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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
मन की विमलता नष्ट होने को अतिक्रम है कहा । शीलचर्या के विलंघन को व्यतिक्रम है कहा ॥ हे नाथ! विषयों में लिपटने को कहा अतिचार है ।
आसक्त अतिशय विषय में रहना महानाचार है ॥ अर्थात् -मन की निर्मलता नष्ट होकर मन में अकृत्य-कार्य करने का संकल्प करना, अतिक्रम कहलाता है। ऐसा संकल्प कार्य रूप में परिणत करने और बत नियम का उल्लङ्घन करने के लिए उद्यत होना तथा अकृत्य-कार्य का प्रारम्भ कर देना, व्यतिक्रम है। इससे आगे बढ़कर, विषयों की ओर आकर्षित होकर व्रत नियम भंग करने के लिए सामग्री जुटाना यानी तैयारी करना अतिचार है और व्रत नियम भंग कर डालना अनाचार है।
इन चारों में से अनाचार दोष से तो व्रत सर्वथा भङ्ग हो जाता है, लेकिन शेष तीन दोषों से व्रत आंशिक भंग होता है। अर्थात् प्रथम के तीन दोषों से व्रत मलीन होता है। इसलिए इन दोषों से बचने पर ही व्रत का पूर्णतया पालन हो सकता है।
जिन तीन दोषों से व्रत में मलीनता आती है, उनमें सब से बड़ा दोष अतिचार है। इसलिए अतिचार का रूप बता दिया जाता है और वह इसलिए कि इस दोष से न बचने पर व्रत मलीन हो जावेगा और इस दोष से आगे बढ़ने पर व्रत नष्ट हो जावेगा।
सामायिक व्रत के पाँच अतिचार हैं, जो इस प्रकार हैं, मन दुष्प्रणिधान, वचन दुष्प्रणिधान, काय दुष्प्रणिधान, सामाबिक
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