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देशावकाशिक व्रत की दूसरी व्याख्या
इससे स्पष्ट है कि जो देशावकाशिक व्रत दिन भर यानी चार या आठ पहर के लिए स्वीकारा जाता है, उसको पौषध कहते हैं और जो प्रहर, मुहूर्त्त आदि थोड़े समय के लिए स्वीकारा जाता है, उसे संवर कहते हैं ।
थोड़े समय का देशावकाशिक व्रत यानि संवर, जितने भी थोड़े समय के लिए स्वीकार करना चाहे, कर सकता है । पूर्वाचार्यों ने सामायिक व्रत का काल कम से कम ४८ मिनिट के एक मुहूर्त्त का नियत किया है। इससे कम समय के लिए यदि पाँच आस्रव का त्याग करना है, तो उस त्याग की गणना संवर नाम के देशावकाशिक व्रत में ही होगी । जब अवकाशाभाव अथवा अन्य कारणों से विधिपूर्वक सामायिक करने का अवसर न हो, तब इच्छानुसार समय के लिए आस्रव से निवृत्त होने के वास्ते संवर किया जा सकता है ।
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वर्त्तमान समय में देशावकाशिक प्रत चौविहार उपवास न करके कई लोग प्राक पानी का उपयोग करते हैं और इस प्रकार से किये गये देशावकाशिक व्रत को भी पौषध कहते हैं। परन्तु वास्तव में इस तरह का पौषध, देशावकाशिक व्रत ही है। पौषध ग्यारहवें व्रत में होता है, वैसे ही दशवें व्रत में भी हो सकता है । ग्यारहवें व्रत का पौषध तब होता है, जब चारों प्रकार के आहार का पूर्णतया त्याग कर दिया जावे और चारों प्रकार के पौषध को
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