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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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ही पड़ेगा, लेकिन आहार करके कोई विशेष गुण निपजाऊँ । वे पुरुष धन्य हैं, जो श्राहार त्याग कर अथवा आयम्बिल करके या निवी करके पौषध करते हैं। मुझ में ऐसी क्षमता नहीं है, इसी से मैं इस प्रकार का आहार करता हूँ।' इस प्रकार त्यागवृत्ति वाले लोगों की प्रशंसा करता हुआ आहार करे, जो नीचे बताई गई विधि से हो ।
असुर सुरं अव चव चवं, अदुअ मविलं बियं अपरिसाड़ि । मण वय काय गुत्तो, भुंजइ साहुव्व उवउत्तो ॥
अर्थात् - भोजन करते समय सुड़सुद्दाट न करे न चपचपाट करे । इसी तरह न बहुत जल्दी भोजन करे, न बहुत धीरे । भोज्य पदार्थ नीचे न गिरने दे, किन्तु मन, वचन, काय को गोप कर साधु की तरह उपयोग सहित आहार करे ।
इस विधि से भोजन करे और वह भी परिमित । इसके लिए कहा है कि 'जाया माया ए मुच्चा' यानि जिससे और जितने आहार से जीवन यात्रा निभ सके, क्षुधा मिट जावे, श्रालस्य न हो, प्रकृति सात्विक और शरीर स्वस्थ रहे, वैसा और उतना ही परिमित आहार करे ।
आहार करके, प्रासुक जल से तृषा मिटावे और हाथ, मुँह स्वच्छ करे । फिर नमस्कार मन्त्र का उच्चारण करके उठे, तथा तिविहार या चौविहार का प्रत्याख्यान करके जिस स्थान पर
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