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देशावकाशिक व्रत
शावक के बारह व्रतों में से दसवाँ और शिक्षा व्रतों में से
दूसरा व्रत देशावकाशिक है। श्रावक, अहिंसादि पाँच अणुव्रत को प्रशस्त बनाने और उनमें गुण उत्पन्न करने के लिए दिक्परिमाण तथा उपभोग-परिभोग परिमाण नाम के जो व्रत स्वीकार करता है, उनमें वह अपनी आवश्यकता और परिस्थिति के अनुसार जो मर्यादा रखता है, वह जीवन भर के लिये होती है। यानि दिक व्रत और उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत जीवन भर के लिये स्वीकार किये जाते हैं और इसलिए इन व्रतों को स्वीकार करते समय जो मर्यादा (छूट) रक्खी जाती है वह भी जीवन भर के लिये होती है। लेकिन श्रावक ने व्रत लेते समय जो मर्यादा रक्खी है, यानि श्रावागमन के लिए जो क्षेत्र रक्खा है,
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