________________
८१
देशावकाशिक व्रत ३ विगय-शरीर में विकृति उत्पन्न करने वाले पदार्थों को विगय कहते हैं। दूध, दही, घृत, तेल और मिठाई ये पाँच सामान्य विगय हैं। इन पदार्थों का जितना भी त्याग किया जा सके, उतने का करे अथवा मर्यादा करे कि आज मैं अमुक-अमुक पदार्थ काम में न लूँगा अथवा अमुक पदार्थ इतने वजन से अधिक काम में न लूँगा। ___ मधु और मक्खन ये दो विशेष विगय हैं। इनका निष्कारण उपयोग करने का त्याग करे और सकारण उपयोग की मर्यादा करे।
मद्य एवं मांस ये दो महा विगय हैं। श्रावक को इन दोनों का सर्वथा त्याग करना चाहिये।
४ पन्नी--पाँव की रक्षा के लिए जो चीजें पहनी जाती हैं, जैसे-जूते, मोजे, खड़ाऊ, बूट आदि इनकी मर्यादा करे।
५ ताम्बुल-जो वस्तु भोजनोपरान्त मुख शुद्धि के लिए खाई जाती है, उनकी गणना ताम्बुल में है। जैसे-पान, सुपारी, इलायची, चूरन आदि, इनके विषय में भी मर्यादा करे।
६ वस्त्र पहनने, जोदने के कपड़ों के लिए यह मयांदा करे कि अमुक जाति के इतने वन से अधिक वस काम में न लूंगा।
७ कुसुम-सुगन्धित पदार्थ, जैसे-फूल, इत्र, तेठ व सुगन्धादिक शादि के विषय में भी मर्यादा करे ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com