Book Title: Shravak Ke Char Shiksha Vrat
Author(s): Balchand Shreeshrimal
Publisher: Sadhumargi Jain

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Page 72
________________ श्रावक के चार शिक्षा व्रत भी जब कभी सामायिक में चित्त न लगे, तब अपने खान-पान और रहन-सहन की आलोचना करके, चित्त स्थिर न रहने के कारण की खोज करनी चाहिए और उस कारण को मिटाना चाहिए । खान-पान और रहन-सहन की छोटी-सी अशुद्धि भी चित्त को किस प्रकार अस्थिर बना देती है, और चतुर श्रावक उस अशुद्धि को किस प्रकार मिटाता है, यह बताने के लिए एक कथित घटना का उल्लेख यहाँ अप्रासंगिक न होगा। एक धर्मनिष्ठ भावक था। वह नियमित रूप में सामायिक किया करता था और इसके लिए उन सब नियमोपनियम का भली प्रकार पालन करता था, जिनका पालन करने पर शुद्ध रीति से सामायिक होती है, अथवा सामायिक करने का उद्देश्य पूरा होता है। एक दिन वह श्रावक, नित्य की तरह सामायिक करने के लिए बैठा। नित्य तो उसका चित्त सामायिक में लगता था परन्तु उस दिन उसके चित्त की चंचलता न मिटी। उसने अपने चित्त को स्थिर करने का बहुत प्रयत्न किया, लेकिन सब व्यर्थ । वह सोचने लगा, कि आज ऐसा कौन-सा कारण हुआ है, जिससे मेरा चित्त सामायिक में नहीं लगता है, किन्तु इधर-उधर भागा दी फिरता है ! इस तरह सोच कर, उसने अपने सब कार्यों को मालोचना की, अपने खान-पान की बालोचना की, किन्तु उसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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