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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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आग ले जाने के लिए तो कुछ लाई नहीं, फिर आग किसमें ले जाऊँगी ! मैं आग लाने के लिए कंडा ले जाना भूल गई थी । पड़ोसिन के द्वार पर कुछ कंडे पड़े हुए थे । मैंने, सहज भाव से उन कंडों में से एक कंडा उठा लिया, और पड़ोसिन के यहाँ से उस कंडे पर आग लेकर अपने घर आई । मैंने, आग जलाकर भोजन बनाया। पड़ोसिन के द्वार पर से पड़ोसिन की स्वीकृति बिना ही मैं जो कण्डा उठा कर छाई थी, उस कण्डे को भी, मैंने भोजन बनाते समय चूल्हे में जला दिया। पड़ोसिन के घर से मैं बिना पूछे जो कण्डा लाई थी, वह कण्डा चोरी या बे-हक का था इसलिए हो सकता है कि मेरे इस कार्य के कारण ही आपका चित्त सामायिक में न लगा हो । क्योंकि उस कण्डे को जलाकर बनाया गया भोजन आपने भी किया था ।
पत्नी का कथन सुनकर श्रावक ने कहा कि बस ठीक है ! उस कण्डे के कारण हो आज मेरा चित्त सामायिक में नहीं लगा । क्योंकि वह कण्डा अन्यायोपार्जित था । अन्यायोपार्जित वस्तु या उसके द्वारा बनाया गया भोजन जब पेट में हो, तब चित्त स्थिर कैसे रह सकता है । अब तुम पड़ोसिन को एक के बदले दो कण्डे वापस करो, उससे क्षमा माँगो और इस पाप का प्रायश्चित करो । श्राविका ने ऐसा ही किया। यह कथानक या घटना ऐसी ही घटी
हो या रूपक मात्र हो इसका मतलब तो यह है कि जो शुद्ध
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