________________
श्रावक के चार शिक्षा प्रत
६६
श्रावक सामायिक में था तब उस दूसरे श्रावक ने, जोहरी के कपड़ों में से वह कण्ठा निकाला और जौहरी को कण्ठा बताकर उससे कहा कि मैं यह कण्ठा ले जाता हूँ। यह कहकर वह दूसरा श्रावक, कण्ठा लेकर कलकत्ता के लिए चल दिया । यद्यपि वह कण्ठा मूल्यवान था और जौहरी श्रावक के देखते हुए बल्कि जौहरी श्रावक को बता कर वह दूसरा श्रावक कण्ठा ले जा रहा था, फिर भी जौहरी श्रावक सामायिक से विचलित नहीं हुआ । यदि वह चाहता तो उस दूसरे श्रावक को कण्ठा ले जाने से रोक सकता था, अथवा हो-हल्ला करके उसको पकड़वा सकता था, लेकिन यदि वह ऐसा करता तो उसकी सामायिक भी दूषित होती और सामायिक लेते समय उसने जो प्रत्याख्यान किया था, वह भी टूटता । जौहरी श्रावक दृढ़ निश्चयी था, इसलिये कण्ठा जाने पर भी वह सामायिक में समभाव प्राप्त करता रहा ।
सामाधिक करके जौहरी श्रावक अपने घर आया । उस समय भी उसको कण्ठा जाने का खेद नहीं था । उसके घर वालों ने उसके गले में कण्ठा न देखकर, उससे कण्ठे के लिए पूछा भी कि कण्ठा कहाँ गया, लेकिन उसने घर वालों को भी कण्ठे का पता नहीं बताया। उनसे यह भी नहीं कहा, कि मैं सामायिक में बैठा हुआ था उस समय अमुक व्यक्ति कण्ठा ले गया, किन्तु यही
कहा कि कण्ठा सुरक्षित है ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com