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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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आकाश में ले गया और श्राकाश-स्थित होकर उस देव ने कुण्ड कोलिक से सैद्धान्तिक प्रश्नोत्तर किये। यानी भगवान महावीर के पुरुषार्थवाद और गोशालक के होनहारवाद के सम्बन्ध में कुण्डको लिक से बातचीत की। कुण्डकोलिक ने देव द्वारा किये गये देकर देव को निरुत्तर करने का प्रयत्न तो अवश्य किया, लेकिन अपना उत्तरीय वस्त्र या अपनी मुद्रिका प्राप्त करने की चेष्टा नहीं की ।
प्रश्नों का उत्तर
कुण्ड कोलिक श्रावक, उस समय सामायिक में नहीं था । फिर भी उसने इस प्रकार धैर्य और दृढ़ता रखी, तो सामायिक करनेवाले में कैसा धैर्य और कैसी हढ़ता होनी चाहिए, यह बात इस आदर्श से सीखने की आवश्यकता है ।
आदर्श सामायिक उसी की हो सकती है, जिसका चित्त सामायिक में स्थिर और आत्मभाव में लीन हो । निश्चयनय वालों ने ऐसी सामायिक को ही सामायिक माना है, जो मन, वचन, काय को एकाताम्रपूर्वक की जावे । इसके विरुद्ध जिस सामायिक में चित्त दूसरी जगह रहता है, आत्मभाव में लोन नहीं होता, वह सामायिक निश्चयनय से सामायिक हो नहीं है। इसके लिए एक कथा भी प्रसिद्ध है, जो इस प्रकार है:
एक श्रावक सामायिक लेकर बैठा था । उसी समय एक
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श्रादमी ने उसके यहाँ आकर उसकी पुत्र वधू से पूछा कि तुम्हारे
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