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सामायिक कैसी हो
ऐसा कोई कारण न जान पड़ा, जो सामायिक में चित्त को स्थिर न रहने दे ! अन्त में उसने विचार किया, कि मैं अपनी पत्नी से तो पूछ देखें, कि उसने तो कोई ऐसा कार्य नहीं किया है, जिसके कारण मेरा चित्त सामायिक में नहीं लगता है ! इस तरह विचार कर, उसने अपनो पत्नी को बुला उससे कहा, कि आज सामायिक में मेरा चित्त अस्थिर रहा, स्थिर नहीं हुआ । मैंने अपने कार्य एवं खान-पान की आलोचना की, फिर भी ऐसा कोई कारण न जान पड़ा, जिससे चित्त में अस्थिरता आवे । क्या तुमसे कोई ऐसा कार्य हुवा है, जिसका प्रभाव मेरे खान-पान पर पड़ा हो और मेरा चित्त सामायिक में अस्थिर रहा हो ।
उस श्रावक की पत्नी भी धर्मपरायणा श्राविका थी। पति का कथन सुनकर उसने भी अपने सब कार्यों की आलोचना की । पश्चात् वह अपने पति से कहने लगी, कि मुझ से दूसरी तो कोई ऐसी त्रुटि नहीं हुई है, जिसके कारण आपके खान-पान में दूषण आवे और आपका चित्त सामायिक में न लगे, लेकिन एक त्रुटि अवश्य हुई है। हो सकता है, कि मेरी उस त्रुटि का ही यह परिणाम हो, कि आपका चित्त सामायिक में न लगा हो। मेरे घर में आज आग नहीं रही थी। मैं, भोजन बनाने के लिए चूल्हा सुलगाने के वास्ते पड़ोसिन के यहाँ आग लेने गई । जब मैं
पड़ोसिन के घर के द्वार पर पहुँची, तब मुझे याद आया कि मैं
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