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सामायिक कैसी हो
जलती हुई भाग रख कर भी कोई व्यक्ति कढ़ाई में भरे हुए दूध में उफान न आने देना चाहे, तो यह कैसे सम्भव है। दूध के नीचे प्रज्ज्वलित आग होने पर, दूध शान्त नहीं रह सकता, किन्तु उफान खावेगा हो। इसी तरह जब तक भोग्योपभोग्य पदार्थ के प्रति मन में आसक्ति है, ममत्व है, तब तक चित्त स्थिर कैसे हो सकता है। चित्त को शान्त अथवा स्थिर करने के लिए यह आवश्यक है, कि जिससे चित्त प्रशान्त रहता है, उन भोग्योपभोग्य पदार्थ का ममत्व त्याग दे और इस ओर अधिक से अधिक गति करे। शास्त्रकारों ने इसीलिये सामायिक से पहिले वे आठ व्रत बताये हैं, जिनको स्वीकार करने पर इच्छा या वासना सीमित हो जाती है तथा चित्त की अशान्ति मिटती है। उन आठ व्रतों के पश्चात् सामायिक का नववां व्रत बताया है। शास्त्रकारों द्वारा बताये गये सामायिक के पहिले के आठ व्रतों को जो भव्य जीव स्वीकार करते हैं, उनकी वासना भी सीमित हो जाती है और उनमें अर्थअनर्थ तथा कृत्या कृत्य का विवेक भी जागृत रहता है। इससे वे विवेकी जीव, उपयोग सहित सामायिक की विधि का पालन करने और सामायिक के समय चित्त स्थिर रखने में समर्थ होते हैं।
इस तरह की शुद्धि के साथ ही, सामायिक में चित्त स्थिर रखने के लिए खान पान और रहन-सहन का शुद्ध होना भी
आवश्यक है। इसलिए भूमिका शुद्ध करके सामायिक करने पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com