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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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सामायिक की विधि पूरी नहीं करते, और यदि करते भी हैं तो उपयोग-रहित होकर सामायिक का पाठ बोल कर सामायिक प्रहण करते हैं। विधि और उपयोग के अभाव के कारण, चित्त का स्थिर न रहना स्वाभाविक है, और तब कहते हैं, कि सामायिक में हमारा चित्त तो स्थिर रहता ही नहीं है, हम सामायिक करके क्या करें ! ऐसे लोगों की समझ में यह नहीं आता, कि जब हमने सामायिक की विधि का पालन ही उपयोग पूर्वक नहीं किया है, तब सामायिक में हमारा चित्त लगे तो कैसे! चित्त बिना प्रयत्न के तो स्थिर होता नहीं है। इसके लिए प्रयत्न का होना आवश्यक है और सामायिक में चित्त को स्थिर करने का पहिला प्रयत्न उपयोग सहित सामायिक की विधि का पालन करना है।
चित्त की स्थिरता का आधार, इच्छा-वासना की उपशमता पर भी है। जिसकी इच्छा-वासना जितने अंश में उपशम होगी या होती जावेगी, भोग्योपभोग्य के साधनों के प्रति विरक्ति बढ़ती जावेगी, उतने ही अंश में चित्त भी स्थिर रहेगा। इसलिए यदि सामायिक में चित्त को स्थिर रखना है, तो उन कारणों को खोजकर मिटाना बावश्यक है, जो कारण चित्त में अशान्ति उत्पन्न करने वाले हैं। जो मनुष्य चूल्हे पर चढ़ी हुई कढ़ाई में के दूध को शान्त रखना चाहता है, उसके लिए यह आवश्यक होगा कि वह कढ़ाई के नीचे जो आग जल रही है उसे अलग कर दे। कढ़ाई के नीचे
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