Book Title: Shravak Ke Char Shiksha Vrat
Author(s): Balchand Shreeshrimal
Publisher: Sadhumargi Jain

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Page 68
________________ भाषक के चार शिक्षा व्रत ५८ विशुद्ध भूमिका में पड़ा हुआ बीज ही निरोग अंकुर देता है और जो वृक्ष निरोग है, वही फलद्रुप भी होता है । सामायिक की भूमिका की विशुद्धि के पश्चात् सामायिक प्रहण करने की विधि का भी पूरी तरह पालन होना चाहिए। सामायिक प्रहण करने के लिए तत्पर व्यक्ति को अपने शरीर पर एक धोती और एक ओढ़ने का वस्त्र, इन दो वसों के सिवाय और कोई वसा न रखना चाहिए, किन्तु सिले हुए वन जैसे कोट, कुर्ता आदि और सिर पर जो वस्त्र हों, चाहे वह टोपी हो, पगड़ी हो, या साफा हो, त्याग देना चाहिए यानी उतार कर अलग रख देना चाहिए। पश्चात सामायिक के लिए उपयोगी उपकरण जैसे रजोहरण, मुख-वत्रिका और भासन श्रादि प्रहण करके, उस भूमि को प्रमार्जित करना चाहिए, जहाँ बैठ कर सामायिक करना है। भूमि प्रमार्जन करके प्रमार्जित भूमि पर आसन बिछा, मुंहपत्ती बान्ध लेनी चाहिये और फिर नमस्कार मन्त्र का स्मरण करना चाहिए। नमस्कार मन्त्र का स्मरण करने के पश्चात, गुरु महाराज को वन्दन करके उनसे सामायिक करने की माझा माँगनी चाहिए। ___ यह सब हो जाने पर सामायिक करने से पहिले जीयों को अपने ' द्वारा जो विराधना हुई है, उसका ईरिया पथिक पाठ द्वारा स्मरण करना चाहिए और विशेष स्मरण करने के लिए कायोत्सर्ग करना पाहिए। कायोत्सर्ग का उद्देश्य, कायोत्सर्ग करने की विधि और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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