________________
सामायिक कैसी हो कायोत्सर्ग में रहने पर शरीर की प्राकृतिक क्रियाओं के होने पर भी कायोत्सर्गअभंग रहने के लिए, कायोत्सर्ग के नियमों का स्मरण 'तस्स उत्तरी' पाठ द्वारा करके यह प्रतिज्ञा करे, कि मेरा कायोत्सर्ग तब तक अभंग रहे, जब तक मैं 'अरिहन्त भगवान को नमस्कार रूप' वाक्य न बोलें। 'तस्स उत्तरी' पाठ पूर्ण होते ही, कायोत्सर्ग करके उन दोषों को विशेष रूप से स्मरण करके मालोचना करे, जो जीवों की विराधना रूप हुए हों।
कायोत्सर्ग समाप्त होने पर आत्मा को शुद्ध दशा में स्थिर करने के लिए 'लोगस्य सूत्र' का पाठ पढ़े, जिससे आत्मा में जागृति हो और आत्मा सामायिक प्रहण करने के योग्य बने । अात्मा में जागृति लाने और आत्मा को ध्येय-साधन के योग्य बनाने का एक मात्र साधन परमात्मा की प्रार्थना करना हो है ।
'लोगस्स सूत्र' का पाठ बोल कर, सामायिक की प्रतिज्ञा स्वरूप 'करोमि भंते' पाठ बोल कर, सामायिक स्वीकार करे। यह करके, फिर परमात्मा की प्रार्थना स्वरूप 'शक्रस्तव' (नमोत्थुणं ) दो बार बोल कर सिद्ध तथा मरिहन्त' भगवान को नमस्कार करे । __ बहुत से लोग सामायिक द्वारा आत्म-ज्योति जगाने के लिए
® अन्य दर्शनों में समाधि के लिए शरीर की प्राकृतिक क्रियाओं को रोकने का विधान है लेकिन जैन-दर्शन में शरीर की प्राकृतिक क्रियाओं को बिना रोके ही समाधि प्राप्त करने का विधान है। -सम्पावक । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com