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सामायिक कैसी हो ७ आलस्य-सामायिक में बैठे हुए बालस्य मोड़ना 'आलस्य दोष है।
८ मोड़न-सामायिक में बैठे हुए हाथ पैर की उँगलियाँ चटकाना 'मोड़न' दोष है।
8 मल दोष-सामायिक में बैठे हुए शरीर पर से मैल उतारना 'मल' दोष है।
१० विमासन-गले में हाथ लगा कर शोक-प्रस्त की तरह बैठना, अथवा बिना पूजे शरीर खुजलाना या चलना 'विमासन' दोष है।
११ निद्रा-सामायिक में बैठे हुए निद्रा लेना, 'निद्रा' दोष है।
१२ वैयारत्य अथवा कम्पन-सामायिक में बैठे हुए निष्कारण हो दूसरे से व्यावच कराना 'वैयावृत्त्य' दोष है और स्वाध्याय करते हुए घूमना यानी हिलना या शीत-उष्ण के कारण कॉपना 'कम्पन' दोष है।
ये बारह दोष काय के हैं। इन दोषों को टालने से काय शुद्धि होती है। मन, वचन और काय के दोष ऊपर बताये गये हैं, इन सब से बचना, भाव शुद्धि है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव, इन चारों की शुद्धि से सामायिक के लिए शुद्ध भूमिका होती है।
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