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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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करता हूँ, उतने समय के लिए सावध व्याणर (कार्य) का दो करण तीन योग से त्याग करता हूँ। यानी मन वचन काय के योग से न तो मैं स्वयं ही सावद्य कार्य करूँगा, न दूसरे से ही कराऊँगा। इतना ही नहीं, किन्तु सामायिक ग्रहण करने से पहले मैंने जो सावद्य अनुष्ठान किये हैं, उन सब की वचन से निन्दा करता हूँ, मन से घृणा करता हूँ और उन कषायादि दुष्प्रवृत्तियों से अपनी आत्मा को हटाता हूँ।
इस प्रकार सामायिक करने के लिए वे समस्त कार्य त्यागे जाते हैं जो सावज्झ हैं। सावज्झ का अर्थ है 'स अवज्झः सावजाः' यानी अवज्झ सहित कार्य को सावज्झ कहते हैं। अवज्झ का अर्थ है पाप इसलिए सामायिक ग्रहण करने के लिए वे सब कार्य त्याज्य हैं, जिनके करने से पाप का बन्ध होता है और आत्मा में पाप कर्म का स्रोत आता है।
शास्त्रकारों ने पाप की व्याख्या करते हुए अठारह कार्य में पाप बताया है। उन अठारह में से किसी भी कार्य को करने पर कर्म का बन्ध होकर प्रास्मा भारी होता है और जो आत्मा कर्म के बोझ से भारी है वह समभाव को प्राप्त नहीं कर सकता। जिन कार्यों से कर्म का बन्ध हो कर आत्मा भारी होता है, थोड़े में उन पाप कार्यों का भी वर्णन किया जाता है।
१ प्राणातिपात यानी जीव हिंसा-इस सम्बन्ध में प्रश्न होता है कि जीव तो शाश्वत है। जीव का अजीव न वो कभी हुआ है, न होता ही है और न होगा ही। फिर हिंसा किसकी
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