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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
जाती है, वही सामायिक पूर्ण फलदायिनी हो सकती है। इन चारों तरह की शुद्धि की भी थोड़े में व्याख्या की जाती है।
१ द्रव्य शुद्धि-सामायिक के लिए जो द्रव्य जैसे भंडोपकरण, वस्त्र, पुस्तक आदि मावश्यक हैं उनका शुद्ध होना भी जरूरी है। भंडोपकरण यानी मुंहपत्ती, आसन, रजोहरण, (पूजनी) माला (सुमरनी ) आदि ऐसे हों, जिनसे किसी प्रकार की प्रयत्ना न हो। ये उपकरण जीवों की यत्ना (रक्षा) के उद्देश्य से ही रखे जाते हैं, इसलिए ऐसे होने चाहिए कि जिनके द्वारा जीवों की यत्ना हो सके।
कई लोग सामायिक में ऐसे आसन रखते हैं जो रूवें वाले या सिये हुए होते हैं, अथवा मुन्दरता के लिए रंग-बिरंगे टुकड़ों को जोड़ कर बनाये गए होते हैं। ऐसे आसन का भली-भांति प्रतिलेखन नहीं हो सकता। इसलिए आसन ऐसा होना ही अच्छा है, जो साफ हो, बिना सिया हुआ एक ही टुकड़े का हो, बहुरंगा न हो, न विकारोत्पादक भड़कीला ही हो, किन्तु सादा हो। इसी प्रकार पूंजनी और माला भी सादी तथा ऐसी होनी चाहिएँ, कि जिनसे जीवों की यत्ना हो, किन्तु अयना न हो। कई लोगों के पास ऐसी पूँजनियें होती हैं, जो केवल शोभा के लिए हो होती हैं, जिनसे सुविधा पूर्वक पूँजा नहीं जा सकता। इस तरह के उपकरण शुद्ध नहीं कहे जा सकते। पूँजनी सादी होनी चाहिए
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