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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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सामायिक करके यह चाहना कि यह मैंने जो सामायिक की है, उसके फल स्वरूप मुझे अमुक वस्तु प्राप्त हो 'निदान' दोष है।
७ सन्देह-सामायिक के फल के सम्बन्ध में सन्देह रखना 'सन्देह' नाम का सातवाँ दोष है। जैसे यह सोचना कि मैं जो सामायिक करता हूँ, मुझे उसका कोई फल मिलेगा या नहीं, अथवा मैंने इतनी सामायिक की, फिर भी मुझे कोई फल नहीं मिला आदि सामायिक के फल के सम्बन्ध में सन्देह रखना, 'सन्देह' नाम का सातवा दोष है।
८ कषाय-राग द्वेषादि के कारण सामायिक में क्रोध, मान, माया, लोभ करना 'कषाय' नाम का आठवाँ दोष है।
९ अविनय-सामायिक के प्रति विनय-भाव न रखना, अथवा सामायिक में देव, गुरु, धर्म की असातना करना, उनका विनय न करना 'अविनय' नाम का नववा दोष है।
१० अबहुमान-सामायिक के प्रति जो आदरभाव होना चाहिए, उस आदरभाव के बिना किसी दबाव से या किसी प्रेरणा से बेगारी की तरह सामायिक करना 'अबहुमान' नाम का दसवों दोष है।
ये दसों दोष मन के द्वारा लगते हैं। इन दस दोषों से बचने पर सामायिक के लिए मन शुद्धि होती है और मन एकाग्र रहता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com