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सामायिक कैसी हो कार्य के औचित्य-अनौचित्य अथवा समय-असमय का ध्यान न रखना 'अविवेक' नाम का पहिला दोष है।
२ यश-कीर्ति-सामायिक करने से मुझे यश प्राप्त होगा, अथवा मेरी प्रतिष्ठा होगी, समाज में मेरा आदर होगा, या लोग मेरे को धर्मात्मा कहेंगे आदि विचार से सामायिक करना 'यश-कीर्ति' नाम का दूसरा दोष है।
३ लाभार्थ-धन आदि के लाभ की इच्छा से सामायिक करना 'लाभार्थ' नाम का तीसरा दोष है। जैसे इस विचार से सामायिक करना कि सामायिक करने से व्यापार में अच्छा लाभ होता है, 'लाभार्थ' नाम का दोष है।
४ गर्व-सामायिक के सम्बन्ध में यह अभिमान करना, कि मैं बहुत सामायिक करने वाला हूँ, मेरी तरह या मेरे बराबर कौन सामायिक कर सकता है, या मैं कुलीन हूँ आदि गर्व करना 'गर्व' नाम का चौथा दोष है।
५ भय-किसी प्रकार के भय के कारण, जैसे राज्य, पंच या लेनदार आदि से बचने के लिए सामायिक करके बैठ जाना 'भय' नाम का पाँचवों दोष है।
६ निदान-सामायिक का कोई भौतिक फल चाहना 'निदान' नाम का छठा दोष है। जैसे, यह संकल्प करके सामायिक करना, कि मेरे को अमुक पदार्थ या सुख मिले, अथवा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com