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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
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सामायिक का उद्देश्य भी नहीं समझा है, न उसकी सामायिक ही सफल हो सकती है। ऐसे व्यक्ति का सामायिक करना, केवल प्रशंसा या प्रतिष्ठा के लिए अथवा धर्म-ठगाई के लिए स्वार्थ-साधन के लिए चाहे हो, सामायिक के वास्तविक फल के लिए नहीं है ।
कई पूर्वाचार्य, सामायिक के फल स्वरूप कई पल्योपम या सागरोपम के नरक का आयुष्य टूटना और देवता का आयुष्य बंधना बताते हैं। किसी अपेक्षा से यह बात ठीक भी हो सकती है, लेकिन इस फल की कामना के बिना जो सामायिक की जाती है, उसका फल बहुत ज्यादा है। इसलिए सामायिक इस तरह के पारलौकिक फल की कामना रखकर करना ठीक नहीं है, किन्तु इसलिए करनी चाहिए, कि मेरा आत्मा सदा जागृत रहे और पाप से बचा रहे। जिस प्रकार घड़ी में एक बार चाबी देने पर वह किसी नियत समय तक बराबर चला करती है, इसी तरह सामायिक करने वाले को भी एक बार सामायिक करने के पश्चात् पाप कर्म से सदा बचते रहना चाहिए, तथा संसार व्यवहार में भी समाधि भाव रखना चाहिए, किसी पारलौकिक या इहलौकिक फल की लालसा न करनी चाहिए। ऐसे फल की लालसा से, सामायिक का महत्व घट जाता है। इसके विरुद्ध जो सामायिक ऐसे फल की लालसा के बिना केवल भारमशुद्धि के लिए ही की जाती है, उसका महत्व बहुत अधिक है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com