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श्रावक के चार शिक्षा व्रत
छः खण्ड पृथ्वी के स्वामी चक्रवर्ती को ऐसे साधनों को क्या कमी हो सकती है जो वे ऐसे साधनों को त्याग कर निकले, इससे यही स्पष्ट है कि पौद्गलिक साधनों में सुख नहीं है। इसलिए सामायिक इस प्रकार के साधन प्राप्त करने के लिए नहीं की जाती है, किन्तु जिस प्रकार बन्धन से जकड़ा हुमा आत्मा, ज्ञान होने पर बन्धन मुक्त होने का प्रयत्न करता है, उसी प्रकार इस संसार की उपाधि से मुक्त होने के लिए ही सामायिक की जाती है। ऐसी दशा में सामायिक के फल स्वरूप इहलौकिक या पारलौकिक सुख सम्पदा चाहना या सामायिक के फल के सम्बन्ध में ऐसी कल्पना करना भी सर्वथा अनुपयुक्त है। किसी आदमीने शारीरिक सुख के लिए बढ़िया बढ़िया वस्त्र पहन रखे हों, लेकिन उन वस्त्रों के कारण गर्मी लगने लगे और घबराहट होने लगे तब शान्ति तभी हो सकती है, जब वे वस्त्र उतार कर अलग कर दिये जावें। इसके विरुद्ध यदि अधिक वत्र शरीर पर लाद लिये गये तो उस दशा में गर्मी या घबराहट भी नहीं मिट सकती, न शान्ति ही हो सकती है। इसी के अनुसार जिन पौद्गलिक संयोगों के कारण आत्मा भारी हो रहा है, उन्हीं संयोगों में अधिक फंसने पर आत्मा को शान्ति नहीं मिल सकती। शान्ति तो उनका त्याग करने पर हो मिल सकती है।
कहना यह है कि सामायिक का फल इहलौकिक या पारलौकिक
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