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सामायिक का उद्देश्य ८ माया-अपने स्वार्थ के लिए दूसरे को ठगने और धोखा देने की जो चेष्टा की जाती है, उसे 'माया' कहते हैं। माया के कारण दूसरे प्राणी को कष्ट में पड़ना पड़ता है, इसलिए 'माया' भी पाप है।
६ लोभ-हदय में किसी चीज की अत्यधिक चाह रखने का नाम 'लोभ' है। लोभ ऐसा दुर्गुण है कि जिसके कारण सभी पापों का आचरण किया जा सकता है। दशवैकालिक सूत्र में कहा है कि क्रोध मान और माया से तो एक एक सद्गुण का ही नाश होता है, लेकिन लोभ सभी सद्गुणों को नष्ट करता है। इसी कारण 'लोभ' की गणना पाप में की गई है।
१. राग-किसी भी पदार्थ के प्रति आसक्ति रूप प्रेम होने का नाम 'राग' है अथवा सुख की अनुसंगति को भी 'राग' कहते हैं। वास्तव में कोई भी वस्तु अपनी नहीं है परन्तु जब उस वस्तु को अपनी मान लिया जाता है, तब उसके प्रति राग होता है और जहाँ राग है वहाँ सभी अनर्थ सम्भव हैं। इसीलिए 'राग' को भी पाप में माना गया है।
११ द्वेष-अपनी प्रकृति के प्रतिकूल बात सुनकर या कार्य अथवा पदार्थ देख कर जल उठना, उस बात, कार्य या पदार्थ को न चाहना और उस बात कार्य या पदार्थ को निःशेष करने की भावना अथवा प्रवृत्ति करना द्वेष है। 'द्वेष' की गणना भी पाप में है।
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