________________ श्रीशान्तिनाथ चरित्र। ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ प्रार्थना व्यर्थ है।" यह सुन मन्त्रीने मन-ही-मन विचार कर कहा,-"अच्छा यदि ऐसा नहीं हो सकता. तो तुम कोई उसीकी सी प्राकृतिवाला व्याधि-रहित, दूसराही पुरुष कहींसे ढूँढ़ ला दो, तो मैं उसीके साथ राजकुमारीका व्याह कराके पीछे राजकुमारीको अपने पुत्रके हवाले कर दूंगा / " देवीने कहा, - "मन्त्री ! मैं किसी बालकको लाकर नगरके दरवाजे पर घोड़ोंकी रक्षा करनेवाले राजपुरुषोंके पास ले आऊँगी। यह जाड़ा दूर करनेके लिये जब अागके पास श्रा बैठे, तब तुम उस लड़केको वहाँसे उड़ा ले आना।" इसके बाद जैसा उचित जान पडे, वैसा करना। यह कह देवी अदृश्य हो गयी। इसी बातपर विश्वास कर मन्त्री बड़ी प्रसन्नताके साथ विवाहकी तैयारियाँ करने लगा। इसके बाद मन्त्रीने अपने अश्वपालको एकान्तमें बुलाकर उससे सारा हाल कह सुनाया और बड़े आदर से कहा,-"यदि कोई बालक कहींसे आकर तुम्हारे पास बैठ रहे, तो तुम उसे. झटपट मेरे पास ले आना / " अश्वपालने उनकी यह आज्ञा सादर स्वीकार कर ली। - इसके बाद कुलदेवीने अपने ज्ञानसे यह मालूम कर लिया, कि इस राजपुत्री का वर तो मंगलकलश होने वाला है। बस, उन्होंने उज्जयिनी-नगरीमें जाकर यागसे फूल लेकर आते हुए मंगलकलशको देख, आकाशमें ही ठहरे हुए कहा,"यह जो बालक फल लेकर चला जा रहा है, वह किराये पर किसी राज-कन्यासे शादी करेगा ?" यह सुनकर मंगलकलशको बड़ा विस्मय हुआ / “यह क्या ?" यही सोचते हुए उसने मन-ही-मन निश्चय किया, कि घर पहुँचकर पितासे यह बात कहूँगा। इसके बाद जब वह घर पहुंचा, तब पितासे वह बात कहना भूल ही गया। दूसरे दिन, उसने फिर वैसी ही बात सुनी। . उस समय ___ उसने अपने मनमें विचार किया,- "अहा ! जो बात मैंने कल मुनी थी, वही तो अाज भी श्राकाशमें सुनाई दे रही है / अच्छा, कल तो मैं यह बात पिताजी से कहना भूल गया ; पर आज अवश्य कहूँगा।" ऐसा ही विचार करता हुश्रा वह रास्तेमें चला जा रहा था, कि इसी समय बड़े जोरकी आधी उठी और उसे चम्पानगरीके पासवाले जंगलमें उड़ा ले गयी। एकाएक वहाँ पहुँच कर वह बड़ा भयभीत हुआ / इसके बाद थका-मांदा और प्यासा होनेके कारण वह एक मानस-सरोवर का सा निर्मल सरोवर देख, वहाँ पहुँचा और वस्त्र भिंगो, और उसीको निचोड़ कर पानी पिया, इसके बाद स्वस्थ हो, कुशके तृण ले, उसने उनकी रस्सी बना डाली और उसके सहारे सरोवरके तीर पर उगे हुए एक बड़े भारी वट-वृतपर चढ़ गया / इतनेमें सूर्य अस्त हो गये। उस समय वट-वृक्षपर बैठे हुए उसने जो चारों ओर नज़र दौड़ाई, तो पासही उत्तर दियाकी ओर अग्नि Jun Gun Aaradhak Trust P.P. Ac. Gunratrasuri M.S.