Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 12
________________ संबोध ॥५॥ जम्हा पुव्वं पच्छा सुहथिरजोगाणुकूलिणी भणिया । जह साहूणमहिंसा न जाइ आयारगोयरए ॥१२१॥ मिहवावारविवज्जण-गुणाओ सम्वत्थ मित्तिभावाओ । सम्मद्दिष्ठिाणे एसा वि'हु भावपूयत्ति ॥१२२॥ तम्हा न हिंसभावो कयावि हुज्जा जिणिदपूयम्मि । अज्झप्पजोगजुत्ता पूया सव्वत्थ जयकरणी ॥१२३॥ अविरयसम्मद्दिठ्ठीण पढम सम्मत्तमूलपढमपया । पुरओ सव्वगुणाण ठाणेसु जहारिहा किरिया ॥१२४॥ जत्थ य जा दवकिरिया अग्गग्गंमिहु तहा तहा दिठ्ठा । भावत्ययस्स सव्वत्थ परमपवित्ती तहा दिठ्ठा ॥१२५॥ सालंबणझाणाओ झाणमणालंबणं हविज्ज सया। किं बहुणा भणिएणं सासयसुहकारिणी पूया ॥१२६॥ तित्थयरो तिल्थयर-तणेण जो सद्दहिज्ज सद्धाए । निस्केवा खलु चउरो एगत्तेणेव विष्णेया ॥१२७॥ आसायणपरिहारो आणाराहणममूढभत्तीए। जिणदव्वपरिच्चाओ जेण कओ सो परमभव्बो ॥ १२८॥ झाणरस य मेयकए निस्केवा जत्थ जत्थ निदिठ्ठा । ते ते पसाहियव्वा विसुद्धसम्मत्तजुत्तेहि ॥१२९॥ पूयाए सत्तविहा सोही बोहिजणाण कायव्वा । धणवत्थखेत्तमणवय-कायापूओवगरणाणं ॥१३०॥ अण्णायदुगंछोछमूलहराणज्जवित्तिहरमलिणं । दवाइ विवज्जणेहिं सुद्धं सत्तीइ धणमिट्ठ ॥१३१॥ वत्थं चउहा तयफल-विगलपणिदिइलोमसंभूयं । अह तइयं च चउत्थं जिणभत्तीए न कायव्वं ॥१३२॥ मुहपुत्तियपडपुत्तिय कज्जे कइयावि तं न कायव्वं । बीयं सेयं मसिणं दुस्सं खोमाइ बहुमेयं ॥१३३॥ नण्णं कियभावाइसुद्ध मुद्धं सहावओ धवलं । जिणभत्तीइ निमित्तं कायव्वं सव्वहा नूणं ॥१३४॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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