Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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विivaarsa सयं गुणाण नासेइ बोहिमुवहणइ । तम्हा लिंगिहिं न कया कायव्वा दव्वओ पूया ॥ २७९ ॥ जइ दव्वत्थयरसिओ हविज्न लिंगी चयेइ गिहिलिंगं । जम्हा भणियं समए पूयपरो देवभोइति ॥ २८० ॥ तम्हा पवयण खिसा - निद्दलण त्थं जईहिं कायव्वा । जिणआणा परिपालण-रूवा भावञ्चणा सुद्धा ॥२८१ ॥ आसायणापवित्ती जिणआणाभंजणंमि पडिवत्ती । सा भत्तीवि अभत्ती संसारपवगुणा जाण ॥ २८२ ॥ विहिवारा पूया कथमंगला य बोहिफला । अन्नाणतमोहरणी धरणी गुणसयसहस्साणं ॥ २८३ ॥ तरूवनाणविन्नाण जोगाईयाण अइसयगुणाणं । तिहुयणजणेहिं अहिया वणिज्जई परक्कमबलेहिं ॥ २८४॥ तेसिंठवणा भव्वाण -मभियगुणकारिणी विणिद्दिष्ठा । सव्वत्थ सयलतियसाई - एहि खलु अच्चणिज्जगुणा ॥ २८५ ॥ जइ नाम गुणसमिद्धं करेइ लोयाण भवभयुच्छेयं । ता किं पडिमा नो की - रइ सव्वत्थझप्पमाहप्पं ॥ २८६ ॥ नागणेवि तहा रूवारूवावमाणया पडिमा । तद्दव्वपज्जवेहिं सरइ जिणिदाण तम्मुत्ती ॥२८७॥ गिउउममुणिजिणाण-मियराणमसेसइढिगुणक लिओ । अरिहजिण नामजुत्तो जिणवरो जत्थतप्पडिमा ॥ २८८ ॥ भवसंसरमाणो विहु न फासए बीयतईयगुणठाणं । खुड्डुभवसुडुमसाहा - रणाइसंदुद्रुभावं नो ॥ २८९ ॥ जह अभवियजीवेहिं न फासिया एवमाइया भावा । इंदत्तमनुत्तरसुर-सिलायपुरिसनरनारयत्तं च ॥ २९० ॥ htoगणरहत्थे पव्वज्जा तित्थवच्छरं दाणं । पवयणसुरीसुरत्तं लोगंतियदेवसामित्तं ॥ २९९ ॥ तायत्तीससुरतं परमाहम्मियजुयलमणुयत्तं । संभिन्नसोयतहपुब्व-धराहारयपुलायचं ॥ २९२ ॥ मइनाणाइसुद्धी सुपत्तदाणं समाहिमरणचं । चारणदुयमहुसप्पिय-खीरासवाखीणठाणंवा ॥२९३॥
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