Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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सो संघो न पमाणं उम्मग्गपरूवयं च बहुलोयं । दट्टण भणंति संघ संघसरूवं अयाणंता ॥११८॥ सुहसीलाओ सच्छं-द चारिणो बेरिणो सिवपहस्स । आणाभठ्ठाओ बहु-जणाओ मा भणह संवृत्ति ।।११९॥ देवाइदव्वभरूकण-तप्परा तह उमग्गपख्ककरा । साहुजणाण पओस-कारिण मा भणह संघ ॥१२०॥ अहम्मअनीईअणायार सेविणो धम्मनीइपडिकूला। साहूपभिइचउरो वि बहुया अवि मा भणह संघं ॥१२१॥ अम्मापियसारिच्छो सिवघरथंभो य होइ जिणसंघो । जिणवरआणाबझो सप्पुच भयंकरो संघो ॥१२२॥ अस्संघ संघ जे भणंति रायेण अहव दोसेण । छेओ वामहत्तं पच्छित्तं जायए तेसि ॥१२३॥ काऊण संघसदं अव्ववहारं कुणंति जे केइ । पप्फोडिअसउणि-डग व ते डंति निस्सारा ॥१२४॥ तेसिं बहुमाणं पुण भत्तीए दिति असणवसणाइ । धम्मोति नाऊणं गाथाएतित्तिधरवाणं ॥१२५॥ संघसमागममिलिया जे समणा मारवेहिं कताई। साहिज्जेण करता सो संघाओ न सो संघो ॥१२६॥ जे साहज्जे वट्ट आणाभंगे पवट्टमाणाणं । मणवायाकाएहि समाणदोसं तयं बिंति ॥१२॥ आणाभंग दळू मझत्थाणु ट्वंति जे तुसिणा । अविहिअणुमोयणाए तेसि पि य होइ वयलोवो ॥१२८॥ तेसि पि य सामण्णं भट्ट भठ्ठलया य ते हंति । जे समणा कज्जाइ वित्तरख्काइ कुव्वंति ॥१२९॥ किंवा देइ वराओ मणुओ सुलू वि धणी विभत्तो वि । आणाइक्कमणं पुण तणूयं पि अणंतदुहहेऊ ॥१३०॥ तित्थयराराहणपरेण सुयसंघभतिजुत्तेण । आणाभजणंमी अपसठ्ठी सव्वहा देया ॥१३१॥ गम्भपवेसो वि वरं भद्दकरो नरयवासपासो वि । मा जिणआणालोव-करे वसणं नाम संघे वि ॥१३२॥
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