Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 94
________________ संबोध ॥४६॥ सच्चित्ते निरिकवर्ण सचिसपिहणं च अन्नववएसो । मच्छरिय तह काला इक्कममिइ पंच अइयारा ॥१३८॥ साहूण कप्पणिज्जं जं न वि दिन्नं कहं पि किंचि तहिं । धीरा जुहुत्तकारी सुसावगा तं न मुंजंति ॥१३९॥ वसहीसयणासणभत्तपाणभेसजवत्थपत्ताइ । जइ वि न पञ्जत्तधणो थोवा वि हु थोवर्ष देइ ॥१४०॥ इहपरलोयासंसा जीवियसंसा य मरणआसंसा । तह कामभोगसंसा भइयारा पंच संलिहणे ॥१४१॥ सीलव्वयाइं जो बहुम्फलाइं हंतूण सुरकमभिलसइ । धिइदुबलो तवस्सी कोडीए कागिणी कुणइ ॥१४२॥ निव १ सिष्टि २ इत्धि ३ पुरिसे ४ परपवियारे य ५सपवियारे य । अपरय सुर८ दरिद्दे ९ हुज्जा नव नियाणाई॥१४३॥ सुबहु पि तवं चिन्नं सुदीहमवि पालियं च सामण्णं । तो काऊण नियाणं मुहाई हारिति अत्ताणं ॥१४४॥ उद्गामी रामा के सबसव्वे विज अहोगामी । तत्थ वि नियाणकारणमओ य मइम इमं वजे ॥१४५॥ काले विणए बहुमाणुवहाणे तहा अनिम्हवणे । वंजणअस्थतदुभए अविहो नाणमायारो ॥१४६॥ निस्संकिय निक्कंखिय निवितिगिच्छा अमूदादिठी य । उवव्हथिरीकरणे वच्छल्लप्पभावणे भट्ठ॥१४७॥ पणिहाणजोगजुत्तो पंचहि समिईहि तिहि गुत्तीहि । चरणायारा तिन्हि वि विवरीयाए अईयारा ॥१४८॥ अणसणभूणोयरिया वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिले सो संलीण-या य बज्झो तवो होइ ॥१४९॥ पायच्छित्तं विणओ वैयावच्च तहेव सज्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि य अम्भितरओ तबो होइ ॥१५०॥ सम्ममकरणे बारस तवाइयारा तिगं तु वीरियस्स । मणवयकाया पावपवत्ता वीरियत्तिगइयारा ॥१५१॥ सम्मत्ते विजयमिवोऽहिंसाए हरिबलो मुसे कमलो। वरदत्तोऽदिम्नमि बंभवए सीलबह इत्थी ॥१५२॥ 1४६॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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