Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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तो जत्थ समाहाणं होइ मणोवयणकायजोगाणं । भूओवरोहरहिओ सो देसो झायमाणस्स ॥ ३७॥ कालो व सुचि जहिं जोगसमाहाणमुत्तमं लहइ । न उ दिवसनिसावेलाइ नियमणं झाइणो भणियं ॥ ३८ ॥ जच्चय देहावत्था जियाण झाणोवरोहिणी होइ । झाइज्जा तयवत्थो टिओ निसण्णो निविन्नो वा ।। ३९॥ सव्वासु वट्टमाणासु णओ जं देसकालचिट्ठासु । वरकेवलाइलाभं पत्ता बहुसो समियपावा ॥ ४० ॥ तो देसकाल चिट्ठा - नियमो झाणस्स नत्थि समयंमी । जोगाण समाहाणं जह होइ तहा पयइयब्वं ॥ ४१ ॥ आलंबणाइ वायण-पुच्छणपरियट्टणाणुचिंताओ । सामाइयाइयाई सद्धम्मावस्सयाई च ॥४२॥ विसमंमि समारुहइ दढदव्वालंबणो जहा पुरिसो । मुत्ताइकपालंबो तह झाणवरं समारुहइ ॥ ४३ ॥ झाणपडिवत्तिकम्मो होइ मणो जोगनिग्गहाईओ । भवकाले केवलिणो सेसम्मि जहासमाहीए ॥ ४४ ॥ आणाविजयमवाए विवागसंठाणओ वि नायव्वा । एए चत्तारि पया झायव्वा धम्मझाणस्स ॥४५|| सुणिऊणमणाइनिहणं- भूअहियं भूयभावणमहग्धं । अमियमजियं महत्थं महाणुभावं महाविसयं ॥ ४६ ॥ झाइज्जा निरवज्जं जिणाण आणं जगप्पईवाणं । अनिउणजणदुन्नेयं नयभंगप्पमाणगमगहणं ॥४७॥ तत्थ य मइदुब्बलेणं तब्विहायरियविरहओ वा वि । नेयगहणत्तणेण य नाणावरणोदणं च ॥ ४८ ॥ हेऊदाहरणसंभवे वि सइ सुष्ठु जं न बुज्झिज्जा । सव्वन्नुमयमवितहं तहावि तं चितए मइमं ॥ ४९ ॥ अणुवकयपराणुग्गह परायणा जं जिणा जुगप्पवरा । जियरागदोसमोहा य नन्नहावाइणो तेणं ॥ ५० ॥ सम्बनई जा हुज्ज वाड्या सव्वोदहीण जं उदयं । इत्तो वि अणंतगुणो अत्थो इक्कस्स सुत्तस्स ॥ ५१ ॥
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