Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संबोध ॥ ५३॥
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sarsaraईओ निच्छयववहारपरकवाओ य । चरिमावत्ते य चरिमं करणं कारेइ सो दिठी ॥ २९ ॥ घणरागद्दोसठि भिदइ पावेइ तञ्चसम्मत्तं । पच्चुप्भडपावपरिभवाणुबंधी किञ्चाओ विरमेइ ॥ ३०॥ सम्मत्तंमि उ लद्धे जइवि गुणा हुंति नोवि पुव्वृत्ता । तह वि हु संविज्जपए रमई मुरकठ्ठमेगठ्ठा ॥३१॥ पुव्वत्तं सत्तविहं मिच्छत्तं पत्तमईयकालभावं । भव्वेहिमभव्वेहि-मणतपुग्गलपरट्टगयं ॥ ३२ ॥ अट्ठममिच्छत्तं पुण भव्वमिच्छेहि णो अभव्वेहि । मग्गाणुसारिमईहिं परमपयठ्ठे किलिट्ठेहि ॥ ३३ ॥ नो जिधम्मे खिसादाहिणकरुणाइगुणसमिद्धेहिं । मंदयरकसाएहिं तेहिमिणं मिच्छमुज्जूढं ॥३४॥ आभिणिवेसियमिच्छं सम्मं जाणिज्ज जो कयग्गेण । तं पुणमभव्वजीवेहि नो पत्तं भवसमुद्दम्मी ॥ ३५ ॥ अठ्ठममिच्छत्तंमि रुई धम्माइरुईण हुज्ज वित्थारो । जइ कहवि पर्यट्टिज्जइ तहा वि तस्संसणा हुज्जा ॥ ३६ ॥ पायमिह संपदायाओ खओवसमियं लहिज्ज सम्मत्तं । खइयमवि केवि अहवा जइ हुज्जा तब्भवे सिद्धी ॥३७॥ चउदस दस य अभिन्ने नियमा सम्मं तु सेसए भयणा । मइउहिविवज्जासे होइ मिच्छंत सेसेसु ॥ ३८ ॥ माइला सम्मेउवसामियं भवे शियमा । पडिवाइस णो नियमं खायं खाओवसमियं वा ॥ ३९ ॥ मिच्छत्तंमी अ खीणे तिप्पुंजी सम्मद्दिठ्ठिणो नियमा । मिच्छत्तंमि उ खीणे दुएगपुंजी व खवगो वा ॥ ४० ॥ उवसमवेयगखइया अविरयसम्माइ सम्मद्दिठिसु । उवसंतमप्पमत्ता तह सिद्धं ता जहाकमसो ॥४१॥ वेम्राणिया य मण्यारयणाइतिनिरआ असंखवासतिरिया य। तिविहा सम्मद्दिठी वेयगओवसामगा सेसा ॥ ४२ ॥ अबद्धआउयाणं मणुयाणं खाइयं खु सेणिगयं । तब्भवियं परभवियं पुव्वनिबद्धाउयाणं च ॥ ४३ ॥
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प्रक०
॥५३॥
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