Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
संबोध ॥५६॥
श्याइतवक्सेिसा नाऊण य जो पदेइ जाहजुग्गं । न कुणइ जो जहवायं न सम्ममालोइयं तस्स ॥६१॥ जइ सालंबणसेवी संकप्पाईण वन्जिओ सययं । नहु तस्स दिज्ज एवं आलोयणपयं पयट्टाओ ॥२॥ तित्थयराइपयाणं अणासायणपरस्स सव्वग्गं । पायच्छित्तं दिज्जा हुज्जा जइ संजमुज्जुत्तो ॥६३॥ आयरियं साइसयं तित्थयरं गणहरं महद्वियं । अझा(आसा)यंतो बहुसो अणतसंसारिओ भणिओ॥६४॥ सइ सामत्थे पवयणकज्जे उज्जुत्ते उन तस्सावि । पायच्छित्तं जायइ अणायरेणं कहं किमवि ॥६५॥ ।
आगमसुय आणा धारणा य जीयं च होइ ववहारो। केवलमणोहिचउदसदसनवपुव्वाइ पढमो य॥६६॥ कहेहि सव्वं जो वुत्तो जाणमाणो विगृहइ । न तस्स दिति पच्छित्तं बिंति अन्नत्थ सोहियं ॥६॥ न संभरेइ जे दोसा सब्भावा न पमायओ। पच्चरकं साहंति उ माइणो न उ साहेइ ॥६८॥ आयारपकप्पाइ खेसं सध्वसुयं विणिद्दिष्ठं । देसंतरठियाणं गूढपयालोयणं आणा ॥६९॥ गीयत्थेणं दिण्णं सुद्धं अवहारिऊण तं चेव । दितस्स धारणा साओ धिई पइ धारणा रूवा ॥७॥ व्वाइं चिंतिऊणं संघयणाईण हाणिमासज्ज । पायच्छित्तं जीयं रूढि वा जं जहिं गच्छे ॥१॥ तत्थ य इमे विसेसा आगमववहारणेहिं दायव्वा । जत्थ जहिंभिप्पायविसेसमूहिस्स सोहीए ॥७२॥ सुयधरेहि लिंगस्स ववहारायारमाणसो कप्पो। तत्थ पुलोइज्ज सया दायव्वा जं जहासुद्धी ॥७३॥ पुव्वं जो संकलिया गूढपएसत्थसत्थपडिबद्धा । गीयत्थनिदेसेहिं दायव्वा जे जहा सोही ॥७॥ जह जम्मकम्मनाल-छिंदणओ अठमाइ जं बद्धं । ववहारपए सोही सम्वत्थोचियविसेसेण ॥५॥
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130