Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 107
________________ Jain Education International सइ पंचरूपभावा नीली कसिणत्तणं खु नी चयइ । दव्यपरिकम्मणाहिं तहा अभव्वाण मिच्छत्तं ॥ १४ ॥ जह पारसफासेण वि कणयत्तं नो लहिज्ज उवधाऊ । एवं जुग्गोपायाण-मंतरा अभव्वजीवों वि ॥१५॥ आगमपारसफासेण सिद्धत्तं नो लहिज्ज कइयावि । जइ अत्थि नाणदंसणलरकणगुणसंमओ आया ॥ १६ ॥ अभिणिवे सियवज्जं चउहा मिच्छपि मझओ एसिं । जीवाणमणाइनिहणमणतपुग्गलपरं हुज्जा ॥१७॥ अह अठ्ठममिच्छत्तं दिठ्ठिजुयं नामओ विणिद्दिवं । तं पुण चरमावत्तंमि हविज्ज मग्गाणुपरिवत्ती ॥ १८ ॥ जिणधम्मं बहु मन्नइ भावायरियं णिसेवए निययं । आसेवइ जमनियमाई गिण्हइ सुहजोयबीयं च ॥ १९ ॥ न धरेइ वयरदोस दव्वाइअभिग्गहाइ गिण्हेइ । नियपरसत्थसमग्गं धारेइ मझत्थभावेण ॥ २० ॥ तिविहअवंचकजोग-किरियाफलमाई ओसहाईहिं । दाणविणयाइजुत्तो नाणगुणवुढिकरणरओ ॥२१॥ पुव्वाइयमहिज्जइ गंथं वियारं कहेइ बंधेइ । केवलमभव्वमिच्छो पुवं न सुणेइ नो गंथं ॥ २२ ॥ गुणिसंगजोगसुकहाकहापरो उचियकिञ्चतप्परओ । किरियाई अणुव्विग्गो जिग्गासा तच्चभावाणं ॥ २३॥ धारयभवसंतासो भवपासी मन्नइ व्व पाससमो। सवणसमीहा सच्चा उज्जुमइ धम्मनिरविग्वो ॥२४॥ भवपासमीत्थं सव्वं कट्ठे करेइ धणदाणं । गुरुभत्तिखंतिजुत्तो अदोहभावेण झाणबीयधरो ॥ २५ ॥ दोणो माई मच्छरठाणी किवणो भवाहिनंदी य । माणी अहलारंभी अवेज्जपयठ्ठदोसजुओ ॥ २६ ॥ अत्तुकरिसं अतंति न धरई लोगुत्तरंभि परकवहो । पच्छाणुतावनिरओ साणुकोसो य लोयगुणो ॥२७॥ इचाइणेगपवयणगुणविहिनिरओ नराण तल्लिच्छो। वेज्जपयलिंगजुत्तो विवरिओ वज्जपयअट्टो ||२८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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