Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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एवं चिय वयजोगं निरंभइ कमेण कायजोगं च । तो सेलेबब्व थिरो सेलेसी केवली होइ॥८॥ उप्पायठिइभंगाइ-पज्जवाणं जमेगदव्यंमी । नाणानयाणुसरणं पुष्वगयसुयाणसारेणं ॥१॥ सवियारमत्थवंजण-जोगंतरओ तयं पढमसुक्कं । होइ पहुत्तवियकं सविपारमरागभावस्स ॥८२॥ जं पुण सुनिप्पकंपं निवायसरणप्पईवमिव चित्तं । उप्पायठिइभंगाइयाणमेगंपि पज्जाए ॥८३॥ अवियारमत्थवंजण-जोगंतरओ तयं बोइअमुक्कं । पुव्वगयसुयालंबणमेगत्तवियक्कमवियारं ॥४॥ निव्वाणगमणकाले केवलिणो दरमिरुद्धजोगस्स । मुहुमकिरियानियट्टी तइयं तणुकायकिरियस्स ॥५॥ तस्सेव य सेलेसी-गयस्स सेलुल्व निप्पकंपस्स । वुच्छिन्नकिरियमप्पडि-वाई झाणं परमसुक्कं ॥८६॥ पढमं जोगे जोगे-सु वा मयं बीयमेगजोगंमी । तइयं च कायजोगे सुक्कमजोगंमि उ चउत्थं ॥८॥ जह छउमत्थस्स मणो झाणं भन्नइ सुनिचले संतं । तह केवलिणो काओ सुनिच्चलो भन्नए झाणं ॥८॥ पुवप्पओगओ चिय कम्मविणिज्जरणहेउओ वा वि । सद्दत्थबहुत्ताओ तह जिणचंदागमाओ य ॥८९॥ चित्ताभावेवि सया सुहुमोवरयकिरियाइ भन्नंति । जीवोवओगसब्भा-वओ य भवत्थस्स झाणाइ ॥९॥ सुक्कझाणसुभावियचित्तो चिंतेइ झाणविरमे वि । निययमणुप्पेहावी चत्तारि चरित्तसंपत्तो ॥९१।। आसवदारावाए तह संसारासुहाणुभावं च । भवसंताणमणंतं वत्थुणं विपरिणामं च ॥९२॥ सुक्काए लेसाए दो तइयं परमसुक्कलेसाए । थिरियाजियसेलेसं लेसाईयं परमसुक्कं ॥९३।। अवहास-मोहविवेग-वुस्सग्गा तस्स हुंति लिंगाई । लिंगिज्जइ जेहिं मुणी सुक्कझाणोवगयचित्तो ॥१४॥
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