Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
सच्चपमायरहिया मुणओ खीणोवसंतमोहा य । झायारों नाणधणा धम्मझाणस्स निद्दिठ्ठा ॥६७॥ एए च्चिय पुवाणं पुव्वधरा सुप्पसत्यसंघयणा । दुन्ह सजोगाजोगासुझाणपराण केवलिणो ॥६८॥ झाणोबरमे वि मुणी निच्चमनिच्चाई चिंतणापरमो । होइ सुभावियचित्तो धम्मझाणेण जो पुब्धि ॥६९॥ हुति कम्मविसुद्धाओ छेसाओ पम्हपीयसुक्काओ। धम्मझाणोवगयस्स तिव्वमंदाइमेयाओ॥७॥ आगमउवएसाणा-निसग्गओ जे जिणप्पणीयाणं । भावाणं सद्दहणं धम्मझाणस्स तं लिंगं ॥७१॥ जिणसाहुगुणकित्तण-पसंसणादाणविणयसंपत्तो। सुयसीलसंजमरओ धम्मझाणी मुणेयव्वो ॥७२॥
॥धम्मज्झाणं सम्मत्तं ॥३॥
अह खंतिमद्दवज्जव-मुत्तीओ जिणमयप्पहाणाओ। आलंबणाहिं जेहि उ सुक्कझाणं समाहेइ ॥७३॥ तिहुयणविसयं कमसो संखिविऊ मणं अणुंमि छउमत्थो । झायइ सुनिप्पकंपो झाणं अमणो जिणो होइ ॥७४॥ जह सब्बसरीरगयं मंतेण विसं णिरुभए डंके । तत्तो पुणोवि णिज्जइ पहाणतरमंतजोगेण ॥५॥ तह तिहुयणतणुविसयं मणोविसं मंतजोगबलजुत्तो। परमाणुंमि निरंभइ अवणेइ तओवि जिणविज्जो ॥७६॥
ओसारिइंधणभरो जह परिहाइ कमसो हुयासव्व । थोवेधणोवसेसो निव्वाइ तओवणीओ य ।।७७॥ तह विसइंधणहीणो मणोहुयासो कमेण तणुअंमी। विसइंधणे निरंभइ निव्वाइ तओवणीओ य ॥८॥ तोयमिव नालियाए तत्तायसमायणोदरत्थं वा । परिहाइ कमेण जहा तह जोगिमणोजलं जाण ॥७९॥
Jain Education I
ntonal
For Private & Personal use only
www.jamalibrary.org

Page Navigation
1 ... 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130