Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 92
________________ संबोध जीवो पमायबहुलो बहुसो वि य बहुविहेसु अत्थेसु । एएण कारणेण बहुसो सामाइयं कुज्जा ॥११२॥ दिवसे २ लरकं देइ सुवन्नस्स खंडियं एगो । एगो (इयरो) पुण सामाइयं करेइ न पहुप्पए तस्स ॥११॥ सामाइयं कुणतो समभावं सावओ यं घडियदुगं । आउं सुरेसु बंधइ इत्तियमित्ताइं पलियाई ॥११४॥ बाणवईकोडीओ लरका गुणसटि सहस्स पणवीसं । नवसय पणवीसाए सतिहा अडभागपलियस्स ॥११५॥ अंकतोऽपि । ९२ ५९ २५ ९२५॥ |८|१| |९|३| तिव्वतवं तवमाणो जन वि निवइ जम्मकोडीहिं । तं समभावियचित्तो खवेइ कम्म खणद्वेण ॥११६॥ जे के वि गया मोरकं जे वि य गच्छंति जे गमिस्संति । ते सव्वे सामाइयमाहप्पेणं मुणेयव्वं ॥११७॥ कायमणोवयणाणं दुष्पणिहाणं सइअकरणं च । अणवठ्ठियकरणं चिय सामाए पंच अइयारा ॥११८॥ पुछि दिसिवयमाणं जं विहियं जम्मपभिइ देसिक्कं । तं चेव मुहुत्तमित्तं जहन्नओ सव्ववयमाणं ॥११९॥ एगमुहत्तं दिवसं राई पंचाहमेव परकं वा । वयमिह धारेह दढं जावइयं उव्वहे कालं ॥१२०॥ सच्चित्तदध्वविगई-वाणहतंबोलवत्थकुसुमेसु । वाहणसयणविलेवणबंभदिसिन्हाणभत्तेसु ॥१२१॥ देसावगासियं पुण दिसिपरिमाणस्स निच्चसंखेवो । अहवा सव्ववयाणं संखेवो पइदिणं जो उ ॥१२२॥ आणवणं पेसवणं सदाणुवाओ य रूवअणुवाओ। बहिपुग्गलपरकेवो दोसा देसावगासिस्स ॥१२३॥ पोसं पुट्टि धम्मस्स धारिजइ तेण पोसहो भणिओ। पव्वमि जो भत्तटुं सो पोसहोवाससवाणं ॥१२४॥ ॥४५॥ in Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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