Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ मकर संबोध ॥४॥ ॥अथ लेश्याधिकारः॥ सन्नाणं लेसाणं मेओ वा अत्तवेयणा सण्णा। सा दुविहा जीवाणं सुद्धासुद्धा य वीरियभवा ॥१॥ तत्थ परिणामजणिया सिलेसदव्वप्पकम्मगयभावा । कव्हाइ दव्वसइ वा फलिहस्सिव दवओ अप्या ॥२॥ (दिलुता जहा) जह जंचूपायवेगो सुपक्कफलभारनमियसव्वंगो। दिठो आह किमन्ने ते बिति जंबू भरकेमो ॥३॥ दिद्रुतस्सोवणओ च्छिदह मूलाओ बेइ जो एवं । सो वट्टइ किण्हाए साहमहल्ला य नीलाए ॥४॥ हवइ पसाहा काऊ गुच्छा तेऊ फलाइं पम्हाए । पडियाइ सुक्कलेसा अहवा अन्नं इमाहरणं ॥५॥ चोरा गामवहत्थं विणिग्गया एगु बेइ घाएह । जं पिच्छह तं सव्वं दुपयं चउप्पयं वा वि ॥६॥ बीओ माणुस, पुरिसे तइओ, वह साउहे चउत्थो उ । पंचमओ जुझंते, छठ्ठो पुण तत्थिमं भणइ ॥७॥ इक्कं ता हरह धणं बीयं मारेह मा कुणह एयं । केवल हरह धणे ता उवसंहारो इमो तेसिं ॥८॥ सव्वे मारेहित्ती वट्टइ सो किण्हलेसपरिणामो । एवं कमेण सेसा जा चरमो सुक्कलेसाए॥९॥ (संग्रहणी चेयं) मूलं १ साह २ पसाहा ३ गुच्छ ४ फले ५ छिंद पडियभरकणया ६। सव्वं १ माणुस २ पुरिसा ३ साउह ४ झूझंत ५ धणहरणा ६ ॥१०॥ वेरेण निरणुकंपो अइचंडो दुम्मुहो खरो फरुसो । किण्हाइ अणझप्पो वहकरणरओ य तत्कालं ॥११॥ मायादमे कुसलो उक्कोडालद्धचबलचलचित्तो । मेहुणतिव्वभिरओ अलियपलावी य नीलाए ॥१२॥ मूदो आरंभपिओ पावं न गणेइ सव्वकज्जेसु । न गणेइ हाणिवुढी कोहजुओ काउलेसाए ॥१३॥ ॥४७॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130