Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
View full book text
________________
तत्थाहारसरीरा-बंभव्वावारभेयओ चउहा । देसे सव्वे य तहा अडभंगा पोसहे भणिया ॥१२५॥ दुगसंजोगे छक्कं चउवीस चउगुणा कमेण इमे । तियसंजोगे चउरो छत्तीसं हुंति सव्वे वि ॥१२६॥ चउसंजोगि सोलस असीइ भंगा हवंति ते सव्वे । संपइ मइदुग्बलाओ देसे सव्वेहिं आहारो ॥१२॥ तं सत्तिओ करिज्जा तवो य जो वनिओ समणधम्मे । देसावगासिएणं जुत्तो सामाइएणं वा ॥१२८॥ जो सामाइयजुत्तो दुविहं तिविहेण होइ सो नियमा । संपइ एसोत्थ विही कुसलस्स जहाजहं भयणा ॥१२९॥ कंचणमणिसोवाणं थंभसहस्सूसियं सुवण्णतलं । जो कारिज्जइ जिणहरं तओ वि तवसंजमो अहिओ ॥१३०॥ पोसेहि सुहे भावे असुहाई खवेइ नत्थि संदेहो। छिदइ नरयतिरिगइ पोसहविहिअप्पमत्तो य ॥१३१॥ सामाइअसामग्गि अमरा चिंतंति हिययमज्झमि । जइ हुज्ज पहरमिक्कं ता अम्ह देवत्तणं सहलं ॥१३२॥ पोसहमसुहनिरंभण-मपमाओ अत्थजोगसंजुत्तो । दव्वगुणठ्ठाणगओ एगठ्ठा पोसहवयस्स॥१३३॥ सत्तहत्तरि सत्तसया सतहत्तरि सहस सत्तकोडीओ। सगवीस कोडिसया नव भागा सत्त पलियस्स ॥१३४॥ अंकतोऽपि । ७७७७७७७७७७८ | ५०/५०
७/७॥ अपडिले हिय अपमज्जियं च सिज्जाइ थंडिलाणि तहा। सम्मं च अणणुपालण ५ मइयारा पोसहे पंच ॥१३५॥ वेहिं लोइयपव्वतिहि-वजओ भोयणंमि वेलाए । संपत्तो गुणजुत्तो साहू वा सडओ भणिओ ॥१३६॥ तस्स य जो संभागो निरवज्जाहारवत्थपत्तवत्थूणं । जो अइहिसंविभागो विष्णेयो निच्चकरणिज्जो ॥१३॥
न Jain Education International
For Private & Personal use only
wahaahelibrary.org

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130