Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 91
________________ एवं खुजतपील्लया कम्म निल्लंकणं च दवदाणं । सरदहतलाय सोसं असइपोसं घ वज्जिज्जा ॥९॥ जं इंदियसयणाई पडच्च पावं करेज सो होइ । अत्थे दंडे इत्तो अन्नो उ अणत्यदंडो य ॥९८॥ तह वज्झाणायरियं पावोबएसं च हिंसदाणाई । चउत्थं पमायचरियं अवज्झाणं अहरुद्देहि ॥१९॥ सत्थग्गिमुसलजंतग तणकट्ठे मंतमूलभेसज्जे । दिन्ने दवाविए वा हिंसप्पयाणमणेगविहं ॥१०॥ न्हाणुव्वट्टणवनग-विलेवणे सहरूवरसगंधे । वत्थासणआभरणे पावृवएसमणेगविहं ॥१.१॥ कुक्कुइयं मोहरियं भोगुवभोगाइरेगकंदप्पा । जुत्ताहिगरणमेए अइआरा णस्थदंडवए ॥१०२॥ सामाइझं करितो पंचुवगरणाइसंजुओ सड्ढो । मुहपत्ती रयहरणं अस्का दंडाण पुंच्छणगं ॥१०३।। सावज्जजोगविरओ तिगुत्तो छसु संजओ । उवउत्तो य जयमाणो आया सामाइयं होइ ॥१०४॥ जो समो सवभूएस तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइयं होइ इमं केवलिभासियं ॥१०५॥ सामं समं च सम्मड्गमिइ सामाइयस्स एगठा । तस्स सामाइयं होइ एयं केवलिभासियं ॥१०६॥ महुरपरिणाम सम्मं समं तुला सम्मखीरखंडजुई। दोरे हारस्स ठिई इगठमियाई तु दवमी ॥१०॥ आउवमाइ परदुरकमकरणं १ रागदोसमज्झत्थं २ । नाणाइतियं ३ तस्साइ पोयण ४ भावसामाई ॥१०८॥ सामाइयं तु काउं गिहकजं जो य चितए सहो। अट्टवसट्टोवगओ निरत्थयं तस्स सामाइयं ॥१०९॥ न सरइ पमायजुत्तो जो सामाइयं कया य कायव्वं । कयमकयं वा तस्स हु कयं पि विहलं तयं नेयं ॥११०॥ सामाइयंमि उ क्रए समणो इच सावओ हवइ जम्हा । एएण कारणेणं बहुसो सामाइयं कुज्जा ॥१११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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