Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ Jain Education national नो अपणा पराया गुरुणो कइया वि हुंति सद्वाणं । जिणवयणरयणनिहिणो सव्ये ते वन्निया गुरुणो ॥ ३ ॥ संपइ दूसमकाले धम्मत्थी सुगुरुसावया दुलहा । नामगुरू नामसढ्ढा सरागदोसा बहू अत्थि || ४ || नामाइचउभेएहिं गुरुणो भणिया जिणिदमग्गंमी । तत्थ य नामठवणा-दव्वेहिं न को वि परमत्यो ॥ ५ ॥ भावेण सुद्धचरणो सुदंसणो तचमग्गकहणपरो । मूलत्तरगुणरयणेहिं भूमिओ संजओ साहू || ६ || व्वओ तिविहा वृत्तो मुदुवगरणोवएसपभिईहिं । सुद्धववहारजणओ लोयाणं पवयणमुहाणं ॥ ७ ॥ संतो पसंतचित्तो दंतो धीरो य परिसहाईहिं । कोहाईकारणे वि हु नो वयणसिरिं पलट्टेइ ॥ ८ ॥ इरिया १ भासा २ एसण ३ गहण ४ परिठ्ठवण ५ नामओ समिई। जयणाए चरणवित्ती असुभनिवित्ती तिहा गुत्ती ॥ ९ ॥ आलंबणकालमग्गण-जयणाचउमेयओ तहा इरिया । तत्थ तिहालंबणयं दंसणनाणे य चरणे य ॥ १० ॥ काण दिवसे वृत्ते मग्गे उप्पहवज्जिए । जयणा दव्वे खित्ते काले भावे तहा चउहा ॥ ११ ॥ कोहे १ माणे २ य माया ३ य लोहे ४ हासे ५ भए ६ तहा । मोहरिए ७ विगहास ८ सव्वहा उवउत्तया ॥ १२ ॥ एयाई अठ्ठठाणाई परिवज्जित संजए । असावज्जं मियं काले भासं भासिज्ज समिइओ ॥ १३ ॥ गासेसणा य गहणेस - णा परिभोगेसणा य जा । आहारोव हि सिज्जाए एए तिन्नि वि सोहए ॥ १४ ॥ ओहोहोपग्गहियं भंडगं दुर्विहं मुणी । गिण्हंतो निस्किवंतो य आयाणं निस्किवे विहिं ॥ १५ ॥ उच्चारं पासवणं खेलं सिघाणजल्लियं । आहारं उवहिं देहं अन्नं वा वि तहाविहं ॥ १६ ॥ सरंभसमारं मे आरभंमि तत्र य । मणं वयं तहा कार्य नियत्तिज्ज जयं जइ ॥ १७॥ For Private & Personal Use Only helibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130