Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ 4444 Jain Education International आणाईसरियं वा इट्टी रज्जं च कामभोगा य । कीत्ति बलं च सग्गो आसन्ना सिद्धि बंभाओ ॥४२॥ कलिकाओ fव जणमारओ वि सावज्जजोगनिरओ वि । जं नारओ वि सिज्झइ तं खलु सीलस्स माहप्पं ॥ ४३ ॥ वह बंधण उब्बंधणनासिदियछेयधणरकयाइया । परदाराओ बहुहा कयत्थणाओ इह भवे वि ॥ ४४ ॥ परलोए सिंबल तिरक - कंटगालिंगणाइ बहुरुवं । नरयंमि दुहं दुस्सहं परदाररया लहंति नरा ॥ ४५ ॥ छिन्नदिया नपुंसा दुरूव दोहरिगणो भगंदरिणो । रंड कुरंडा वंझा निंदु विसकन्ना हुंति दुस्सीला ॥ ४६ ॥ जोएइ खेत्तबत्थूणि १ रूप्पकणयाइ देहसयणाण २ | धणधन्नाइं परघरे बंधइ ३ जानियमपज्जंतो ॥४७॥ दुपाई चप्पयाई गब्भं गद्देइ ४ कुप्पसंखेवो । अप्पधणं बहुमुल्लं ५ करेइ पंचमवए दोसा ॥ ४८ ॥ बझभंतर मेएहिं नायव्वो परिग्गहो दुविहमेओ । मिच्छत्तरागदोसाइ अभितरओ मुणेव्व ॥ ४९ ॥ झो नवविहो ओ धणधन्नखेत्तवत्थुरुप्पाइं । सोवन्नकुवियपरमाण दुपयचउप्पयमुह वृत्तो ॥ ५० ॥ धन्नाइ चउव्वीसं धणरयणाइं वि हुंति चउवीसं । दसहा चउप्पयं पुण दुविहं दुप्पयं कुप्पमेगं ॥ ५१ ॥ • वस्थांवररूवं तिविहं एवं हवंति चउसठ्ठी | अहवा गणिमं १ धरिमं २ मेयं ३ तह पारिछिज्जं च ॥५२॥ गणिमं जाइफलफोप्फलाइ १ धरिमं तु कुंकुमगुडाइ २ । मेज्जं चोप्पडलोणाइ ३: रयणवत्थाइ परिच्छेज्जं ४ ॥ ५३ ॥ धन्नाइ चउव्वीसं जव १ गोहुम २ सालि ३ वीहिया ४ सठ्ठि ५ । कोदव ६ अणुया ७ कंगू ८ राल ९ तिल १० मुग्ग ११ मासा य १२ ॥ ५४ ॥ अयसि १३ हरिमंथ १४ तिऊडिय १५ निप्पाव १६ सिटिंद्र १७ रायमासा य १८ । For Private & Personal Use Only *%%%% www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130