Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संबोध
वारसदाब-
इकू १९ मसूर २९ तुवरि २१ कुलत्या २२ तह धनय २३ कलामा २४ ॥१५॥ रयणाई चउवीसं २४ सुवन १ तउ २ तंब ३ रयय ४ लोहाइ ५।
सीसग ६ हिरण्ण ७ पासाण ८ वयरमणि मोतियप्पवालं ॥५६॥ संखो तिणिसागुरुचंदणाणि वत्थमल्लाणि कठाइ । नहचम्मदंतवाला गंधा दवोसहाइं च ॥५॥ मूमिगिहा य तरुगण तिविहं पुण थावरं मुणेयध्वं । चक्कारबद्धमाणुस्स दुविहं पुण होइ दुपयं तु ॥५८॥ गावो महिसा ओट्टिय अयएलय आसआसतरगा य । घोडगगद्दहहत्थी चउप्पयं होई पसुयाओ ॥५९॥ णाणाविहोवगरणं णेगविहं कुप्पलरकणं होइ । एसो अत्थो भणिओ छबिह चऊमठ्ठ मेओ य ॥६॥ खित्तं सेउ १ केउ २ उभयमयं३ वत्थुति विहमेवं तु। खाउ १च्छियं २.च खाओच्छिय ३ मेयं तिविह मुणेयव्वं ॥६॥ जह जह अप्पो लोहो जह जह अप्पो परिग्गहारंभो। तह तह सुहं पवढ्इ धम्मस्स य होइ संसिद्धी ॥२॥ आरोग्गसारियं माणुस्सत्तणं सच्चसारिओ धम्मो । विज्जा निच्छयसारा सुहाइं संतोससाराई ॥६३॥ तिरियं अहो य उढं दिसिवयसंखा अइक्कमे तिण्णि । दिसिवयदोसा सइ-विह्मरणं खित्तबुढी य॥६४॥ उवभोगो विगईओ तंबोलाहार पुप्फफलमाई । परिभोगे वत्थसुवण्ण-माईयं इत्थिगेहाई ॥६५॥ भोयणओ कम्माओ दुविहं उवभोगपरियभोगेहिं । वाणिज्जं सामण्णं विण्णेयं तिविहमईयारे ॥६६॥
P॥४॥ अप्पकं दुप्पक्कं सच्चित्तं तह सच्चित्तपडिबद्धं । तुच्छोसहिभरकणयं दोसा उवभोगपरिभोगे ६७॥ सइवेलं खलु भोगो सणपुप्फाईणमसइमुवभोगो । भोगुवभोगं दुविहा संकप्पारंभओ अहवा ॥६८॥
CRORSC
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