Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संबोध ॥३८॥
मियभासी करणिक्को सज्जणसेवी विवेयसुपइण्णो । मुरुवयणे ददृचित्तो जुग्गो पवयणसवर्णमि ॥२९॥ जुग्गाणुसारी पणतीसगुणजुत्तो धम्मकम्मसंजुत्तो। ववहार दवओ सो विण्णेओ सुगुरुपयसेवी ॥३०॥ नयसंपुण्णधणोहो सिठ्ठायारप्पसंसओ सययं । नियकुलसीलेहि समं सगुत्तवजं कयवीवाहो ॥३१॥ पावाणुविस्ककारी विसिठ्ठजणक्यसुकिच्चकारिल्लो । कत्थ विन अवण्णवाइ विसेसगुरुजणाईणे ॥३२॥ नो अणतिगुत्तगेहो सुसंगकारी न गेहबहुदारो। कयसुविहिपमुणिसंगो अम्मापियराइभत्तियओ ॥३३॥ विवष्ठाणचाइ निदियवावारकरणनिवित्ती। लाहुच्चियवयकत्ता उन्भडवेसो न कइया वि ॥३४॥ सुस्सुसाइधीगुणजुत्तो जिणधम्ममसईसुणमाणो । काले भोयणरुइओ संतोसे दाणगुणजुत्तो ॥३५॥ साहियतिवग्गरयणो अणोण्णमवाहकालवत्थूहि । कयपडिवत्ती पवित्ती साहुतिहिदीणपमुहाणं ॥३६॥ नयकुग्गहियचित्तो सुगुणो गुणपरकवाय तत्तिल्लों। तहदेसकाल चरियाइ चरमाणो बलाबलं जाणे ॥३७॥ णिच्चं सुदीहदंसी विसेसदरको कयन्न सव्वत्थ । सइओ वुढजणाणं पूयाकडपेसपोसयउ ॥३८॥ जणवल्लहो सलज्जो सोमो य परोबयारनिरओ य । मग्गाणसारिगुणगणसहिओ सहिओ कुडंबेहिं ॥३९॥ पच्चरकाणे कुसलो अद्धाभिग्गहवयाइनियमे य । दवाइचउक्केहि देसे सम्वेगदुगजोगे ॥४०॥ दुविहे वि अइक्कमवइक्वमाइयाराहि तह वइयरेहिं । सुवियारजाणसुगुरूप्पवयणसवणरओ सुद्धसद्धाए ॥४१॥ तिगरणतिजोगजुत्तं सब्वं तदियरं च देसओ भणियं । सावजं सानुबंध सावज्ज निरणुबंधं च ॥४२॥ निरबंघमसावज्जं साणुबंधं तहा असावजं । चउमेयं जं किञ्च पञ्चरकाइ जहाजुरंग ॥४३॥
P॥३८॥
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