Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 66
________________ संबोध ॥३२ ॥ Jain Education International पालमाइअहापवत करणेहि कोवि पंचिदी । भव्वो अवढपुग्गलपरियहवसेससंसारो ॥ ४ ॥ पलिय असंखविभागे एगा कोडि हविज्ज कम्मठिई । सतह वि कम्माणमहापवत्तेण करणेणं ॥ ५ ॥ itor ओकरकडघगरूडगूढगंटिव्व । जीवस्स कम्मजणिओ घणरागदोसपरिणामो ॥६॥ भित्तूणं तमपुव्वकरणेणझप्पझाणसुद्धेण । तत्थ य अंतरकरणं करेइ अंतीमुहुत्तभियं ॥७॥ उवसमसेढिगयस्स वि होइ उवसाभियं तु सम्मत्तं । जो वा अकयतिपुंजो अखवियभिच्छो लहइ सम्मं ॥ ८ ॥ खीणंभि उईण्णभि अणुइज्ते अ सेसमिच्छत्ते । अंतोमुहुत्तभित्तं उवसमसम्मं लहइ जीवो ॥ ९ ॥ जागंठी ता पढमं गठि समइच्छओ भवे बीयं । अनियट्टीकरणं पुण सम्मत्तपुररकडे जीवे ॥१०॥ आलंबणमलहंती जहठ्ठाणं न मुंचए इलिया। एवं अकयतिपुंजी मिच्छत्तं उवसमी एइ ॥ ११ ॥ उस सम्मद्दिी अंतरकरणे टिओ वि जइ को वि । देसविरई पि लहइ केवि पमत्तापमत्तं पि ॥ १२ ॥ भव्वो वाऽभव्वो वा गठिसमी िन भिदंतो । संखिज्जमसंखिज्जं कालं चिट्ठेइ जइ को वि ॥ १३ ॥ दव्वयस्स य लाही हविज्ज पुव्वं विमुत्तदिरकंभि । जिगरिद्धिदंसणाओ उवरिमगे विज्जगहङ्कं ॥ १४ ॥ एयमभव्वाणं चिय भव्वाणं पुणमभिन्नदसपुब्वा । अंतमुहुंत्तेण वि कोइ गठिं भिन्ना लहेइ सिवं ॥ १५ ॥ उवसमसम्मत्ताओ चइउं भिच्छे अपावमाणस्स । सासायणसम्मत्तं तयंतरालंमि छावलियं ॥ १६ ॥ पच्छा मिच्छद्दिठ्ठी सासायणचुओ हवे नियमा । उक्कोसं सासायण - मुवसमियं पंचत्तमिह ॥ १७ ॥ पुत्रमपुत्रकरणेणं अंतरकरणेण वा कयतिपुंजी 1 कोहवनिदंसणेण य सुद्धाणुवेयगो होइ ॥ १८ ॥ For Private & Personal Use Only मक० ★ ॥३२॥ nelibrary.org

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