Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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संबोध ॥ ३१ ॥
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सिरतुंडंमि मुंडा उभडवेसा विचित्तवत्थधरा । विज्नंजणचुण्णाइ कुब्वंता कुलममत्ताइ ॥ ३३० ॥ सम्मं भासइ जीवाणं पुच्छमाणाण ज़िणमयं ते वि । सारूविणो य पवयणमोसं दुठ्ठेति मन्नंता ॥३३१॥ पच्छाकडित्ति जेण य चरणं पच्छाकडं कयं रम्मं । उरिकत्ता गिही जाओ ससिहो भिरकइ अभज्जो य ॥ ३३२ ॥ सिंह भज्जगोविय सिद्धपुत्तो सकूचिओ भणिओ । नो भिरकइ सिप्पाइवम् काऊण जीवेइ ॥ ३३३ ॥ केवि भणति पच्छा - कडपुत्तो सिद्धपुत्तगो भणिओ । ससिहो वा असिहो वा सभज्जगो वा अभज्जो वा ॥ ३३४ ॥ एए सव्वे विसम्मत्त संजया जइ हवंति नामाणि । नो तेसिं जइ सम्मत्तं भङ्कं सव्वे वि ते गिहिणो ॥ ३३५ ॥ आलोयणाइकज्जे एए जुग्गा हवंति कइयावि । जइ नाणा सच्चभासण गुणप्पहाणा मुणियठाणा ॥ ३३६ ॥ जेवि कुसीला कुवएस-दायगा दंभधम्मछलमाणा । ते वि हु अदंसणिज्जा कुसीललिंगं धरेमाणा ॥३३७॥ धन्ना विहिजोगो विहिपरकाराहगा सया धन्ना । विहिबहुमाणी धन्ना विहिपरकअदूसगा धन्ना ॥ ३३८ ॥ विकिरणं विहिराओ अविहिञ्चाओ कए वि तम्मिच्छा । अनुक्करिसं कुज्जा णेव सया पवयणे दिठ्ठी ॥ ३३९॥ आसन्नसिद्धियाणं जीयाणं सयलअत्थिवाईणं । लरकणमेयं विवरीय-मभव्वजियदूरभव्वाणं ॥ ३४० ॥ सम्मत्तनाणचरणानुच्चाइमाणाणुगं च जं जत्थ । जिणपन्नत्तं भत्तीए पूअए तं तहाभावं ॥ ३४९ ॥ केसिंचि अ आएसो दंसणनाणेहिं वट्टए तित्थं । वुच्छिन्नं च चरितं वयमाणे होइ पच्छित्तं ॥ ३४२ ॥ दुप्पसर्हतं चरणं जं भणियं भगवया इहं खित्ते । आणाजुत्ताणमिणं न होइ अहुणोत्ति वामोहो || ३४३ ॥ कालोचियजयणाए मच्छररहियाण उज्जमंताण । जणजत्तारहियाणं होइ जइत्तं जईण सया ॥ ३४४॥
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प्रक
॥३१॥
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