Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 62
________________ P संबोध ॥३०॥ REC4 अहंवा देइ दिरकं अत्तठा धम्मियाण तप्पुरओ । सव्वं विरयायारं परवेत्ता जुजए सम्मं ॥३०९॥ अह जोअ णो गिण्हई दिरकं अमुणियमुणित्तणुज्जोओ। तं दिरकइ नियविणयठाए तं जुजए य पुणो ॥३१०il ओसन्नो अत्तठ्ठा परमप्पाणं च हणइ दिरकंतो । तं छुहइ (बुडइ) दुग्गईए अहिययर बुडुइ सयं च ॥३११॥ गीय कप्पनिसीहाइ सुत्तं अत्थं च तदुभयविहिन्नू । सो गीयत्यो अन्नो समवायधरोंऽणुओगधरो ॥३१२॥ गीयत्यो वि हु गीयत्थसेवाबहुमाणभत्तिसंजुत्तो । परिसागुणनयहेऊ-वाएहि देसणाकुसलो ॥३१३॥ विहिवाए विहिधम्म भासइ नो अविहिमग्गमण्णत्थं । इक्को वि जणमझ-ट्टिओ व दिया व राओ वा ॥३१४॥ पाणते वि न मिच्छा भासइ आयारगोयरं परमं । जिणमग्गे पडिकूलं न रुयइ बहिककिरिया वि ॥३१५॥ सव्वत्थ उचियदिछी उचियपवित्ति करेइ सव्वत्थ । परदोसा दठूणं मुणइ सगकम्मपयडिभवा ॥३१६॥ ओसन्नो जइवि तहा पायडसेवी न हुंति दोसाणं । जम्हा पवयणदोसो मोहो उ सुद्धजणमझे ॥३१॥ गीयत्थाणं पुरओ सच्चं भासेइ निययमायारं । जम्हा तित्थसारिच्छा जुगप्पहाणा सुए भणिया ॥३१८॥ सारणवारणचोयण-पडिचोवणमाइएसु कज्जेसु । तप्पुरओ कायवो नाणीणं दंसियं जम्हा ॥३१९॥ पवयणमुभावंतो ओसन्नो वि हु वरं सुसंविग्गो । चरणालसो वि चरण-ट्ठियाण साहूण परकपरो ॥३२०॥ नाणाइगुणविहीणा अत्तुक्वरिसा अणज्जुनियडिपरा । धम्मच्छ लेण गिहिसंथवकारया तेसि मा संगो ॥३२॥ धन्नाणं होइ जोगो मुणीण परमत्थतत्तजुत्ताणं । संविग्गपरिकयाणं पुण संगो भब्वभद्दकरो ॥३२२॥ (काव्यं ३) तत्त्व १ ज्ञानां २ ग ३ धम्झे ४ न्द्रिय ५ मद ६ विषय ७ द्रव्य ८ संभोग ९ योगाः १० । ३०॥ Jain Education ational For Private & Personal Use Only w elbrary.org

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