Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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मिच्छत्तं जमुइण्णं तं खीणं अणुइ च उवसंतं । मीसीभावपरिणयं वेइज्जतं खओवसमं ॥१९॥ उवसमसम्मत्ताओ खाओवसमस्स को विसेसोस्थि । उवसंमि मिच्छत्तं पएसवेजं न इह वेजं ॥२०॥ वेयगसम्मत्तं पुण सव्वोइअचरमपुग्गलावत्थं । खोणे इंसणमोहे तिविहंमि वि खाइयं होइ ॥२१॥ अंतमहत्तोवसमो छावलि सासाण वेयगो समओ। साहियतित्तीसायर खइओ दुगुणो खओवसमो ॥२२॥ वेयगखाइगमिक्कसि वारमसंखिज्जओ खओवसमो। साइअणंतो कालो खइयस्स य सिद्धभावंमि ॥२३॥ अंतोमुहुत्तमित्तं पि फासियं हुज्ज जेहि सम्मत्तं । तेसिमवद्दपुग्गलपरियट्टवसेससंसारो ॥२४॥ उक्किठ्ठरसेण नोकि-ठिइबंधो हवइ कम्मपरडीणं । सम्मत्तपरिचाए वि पडिवडिओवसमी खओ वा ॥२५॥ खाइयमपडिवाइ सत्तगरखीणो तिदंसचउअणओ । चउतिभवभाविमुरको तब्भवसिद्धी अबद्धाऊ ॥२६॥ सम्मत्तमि उ लद्धे विमाणवज्जं न बंधए आऊ । तिरिमणुओ देवो पुण नराउमवि चउगइ सबद्धाऊ ॥२७॥ सम्मत्तमि य लद्धे पलियपहुत्तेण सावओ हुज्जा । चरणोवसमखयाणं सागरसंखंतरा हुँति ॥२८॥ उवासमसे ढिचउक्कं जायइ जीवस्स आभवं नूणं । ता पुण दो एगभवे खवगस्सेढी पुणो एगा ॥२९॥ सामाइयं चउद्धा सुय १ सण २ देस ३ सव्व ४ मेएहि । नाणभवे आगरिसा एगभवं पप्प भणियव्वा ॥३०॥ तिण्हं सहसपुहुतं सयप्पटुत्तं च होइ विरईए । एगभवे आगरिसा एवइया हुंति नायव्वा ॥३१॥ तिण्हमसंखसहस्सा सहस्सपुहुत्तं च होइ विरईए । नाणभवे आगरिसा एवइया हुंति नायव्वा ॥३२॥ अरिहंतेसु य रागो रागो साहुस बंभयारीसु । एस पसत्थो रागो अज्ज सरागाण साहूणं ॥३३॥
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