Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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जत्थ न बालपसंगो नोक्कडवंचणबलाइकारवणं । गीयत्थाणं सेवा तत्थ जइत्तं सया जाण ॥३४५॥ सव्वजिणाणं तित्थं बकुसकुसीलेहि वट्टए इत्थं । नवरं कसायकुसीला पमत्तजइणो विसेसेण ॥३४६॥ न विणा तित्थं नियंठेहि नातित्था य नियंठया । छक्कायसंजमो जाव ताव अणुसज्जणा इण्हि ॥३४७॥ एवं अठ्ठवियप्पा परिहरियव्वा हु पदमभंगिल्ला । बीयनिसेवियव्वा निच्च तुरिया वि सेविज्जा ॥३४८॥ तेसिमभावे तइया दुव्बुठ्ठिनाएण संधिमभिगिझ । भइयव्वा अवरे वि हु कारणमासज्ज सुद्धगुणा ॥३४९॥ दसणतिगहीणपढमा बीया दंसणतिगेण परिसुद्धा । तुरिया चरणविहीणा दंसणभयणा हु तइयंमी ॥३५०॥ दब्वेण य भावेण य चरणं नेयं जहक्कम तेसिं । अवरंमि दंसणगुणं नेयं भयणा हु नाणस्स ॥३५१॥ वृहदुवारगंथे छेयाइसुवित्थरो मुणेयव्वो । संजमठाणा सेढी पज्जाया कंडगाठत्थ ॥३५२॥
॥ इति गुरुस्वरूपाधिकारः॥
॥ अथ सम्यक्त्वाधिकारः॥ चरणाईया धम्मा सव्वे सहला हवंति थोवा वि । दंसणगुणेण जुत्ता जइ नो उण उच्छुदंडनिभा ॥१॥ दसणमिह सम्मत्तं तं पुण तत्तत्यसद्दहणरूवं । दसणमोहविणासे निम्मलमझप्पगुणठाणं ॥२॥ खइयाइपणविहं पुण दंसणं तत्थ पदममुवसमियं । लम्भइ णाइअणंते संसारे सुभोमिरो जीवो ॥३॥
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