Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha
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गोव
२४ ॥
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सवेसि णिज्जो तित्थरो जह तहा य आयरिओ । परिसहवग्गे अभीओ जिणुव्व सूरी वि धम्मक ॥ १५२ ॥ - fies न लोगकज्जं विकत्थणं कुणइ नेव संलावं । इक्को चिठ्ठइ धम्म-झाणे निस्संगयारत्तो ॥ १५३ ॥ एवं तित्थयरसमं नवहा सूरीण भासियं समए । तस्साणाए वट्टण-मुब्भावणमित्य धम्मस्स ॥ १५४ ॥ आगाए तो आणाए संयमो तह य दाणमाणाए । आणारहिओ धम्मो मुणीग भणिओ तहा असारो ॥ १५५ ॥ जहतुसखंडणमयगंडयाणि रुइयाणि सुण्णरणमी । विहलाइ तहा जाणसु आणारहियं अणुट्टाणं ॥ १५६ ॥ आणाखंडणकारी जइ वि विशुद्धं करेइ आहारं । धम्मोवएसकरणाइ-विहलं सव्वं अठ्ठाणं ॥ १५७॥ सोविअरिहदेव सुगुरु गुरू भणइ नामभित्तेण । तेसि सुद्धसरुवं पुण्णविहुणा न पार्वति ॥ १५८ ॥ वेसि सेवासंग दूरट्टियमेव कालदोसाओ । तेसिं सुद्धसरूवस्स जाएा मवि दुल्लह लोए ॥ १५९ ॥ ते घण्णा कयपुण्णा ताकपत्थं सुजीवियं जम्मं । जे सुगुरूण सरूवं लहति वंदंति झायति ॥ १६० ॥ जत्य यतित्ययराणं उसहाई सुरिंदमहियाणं । आण नाइक्कमइ त गच्छ भावसूरिपहुं ॥ १६९ ॥ जय अज्जाहिं समंधेरा वि न उल्लवंति गयदसणा । नय झायंती त्यीण - मंगोवंगाइ तं गच्छं ॥ १६२ पुढविदगअगणिमारुय (तह) वणप्पइतसाण विविहाणं । मरणंते वि न पीडा करेइ मणसा तयं गच्छं ॥ १६३ ॥ एवारिस आयरिओ जत्थ गणे एरिसो वि ओज्झाओ । पवयणमंदिरखंभु-ग्गयवेइयसंनिहो जाण ॥ १६४ ॥ पसमो पसन्नवणो विहिणा सव्वाण झावणाकुसलो | आयरियवयणपालण - तप्परो परमकज्जधरो ॥ १६५ ॥ पणवीस गुणसमेओ विसेसओ सञ्चकज्ज सबवओ । संघाइयाण कज्ने उज्जुत्तो दडपइन्नो य ॥ १६६ ॥
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प्रक०
॥२४॥
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