Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 53
________________ संपुणगजोगवाही कालंग्गहणप्पभिइअणुटाणो । उज्जमइ उज्जमावइ जहजुग्गं सो गणी गच्छे ॥१९३॥ उठ्ठावणा पहावणा खित्तोव हिमग्गणेसु अविसाई। सुत्तत्थतदुभयविऊ गुणसिद्धो एरिसो अगणी ॥१९४|| ए पंचावि पयत्था लघुपज्जाया वि अवमरायगिया । पज्जायजिसामन्नसाहूणं वंदणिज्जा य ॥१९५॥ सामन्नत्तं गुरुकयपयमत्तमविरिकऊण विण्णेयं । सामन्ना अवि मुणिणो-गुणरयणकरंडगम्भूया ॥१९६॥ जत्थ य पंच इमे वि नत्थि गणे सो हु पल्लिसारिच्छो । सम्मत्तरयणहरणे भव्वाण भवन्भमणसीलो॥१९७॥ तत्थ न मुहुत्तमित्तं वसियव्वं सुविहिएहि साहूहि । जइ सामण्णा मुणिणो ना गुणिणो वओ वरं गेहं ॥१९८॥ छब्बय ६ छकायररका १२ पंचिंदिय १७ लोहनिरंगहो १८ खती १९ । भावविसुद्धी २० पडिलेहणाइकरणे विसुद्धी य २१ ॥ १९९ ॥ संयमजोए जुत्तो२२ अकुसलमणवयणकायसंरोहो २५। सीयाइपीडसहणं २६ मरणं उवसग्गसहणं च २७ (१) ॥२०॥ सत्तावीसगुणेहिं अन्नेहिं जो विभूसिओ साहू । जिणपासायपवेसे दुयारसमो रम्मगुणनिवहो ॥२०१॥ उरग १ गिरि ... ... ... ... ... ... ... ... ॥२०२॥ ... ... ... .. ... ... ... ... ... ... ...(२) ॥२०३॥ पंचमहव्ययभावण-भाविल्लो २५ दव्वभाव २ मेएहि २७ (३)। पणवीस मसुह भावण-मुझइ २५ तह रागदोसेहिं २२७ (४) ॥२०४॥ दस समणधम्म १० बंभ-अयगुत्ती ९ असमयमायाओ८धारेइ सगवीसं २७ निचमुज्जु य ववहारे (५) ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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