Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ भावण १२ सिज्जचउक्कं सुहं ४धरेइ चइज्ज भयसत्त ७ दुहसेज्ज चउक्कं ४ पुणं सगवीसगुणा २७मुणिवराण(२१)॥२१९॥5 दस पच्चरकाण १० विगई-गारस ११ छावस्सया य ६ सगवीसं २७ (२२)। दिव्वाइ चउ ४ छुहाइ-बावीसं परिसहा २ धिइए १२७ (२३)॥ २२० ॥ जिण १ थेरकप्प २ दुविहा आचेलुकाइदस १० एण चरितं ५। पायच्छित्तं दसहा १० सगबीसगुणा २७ मुणीणं च (२४) ॥२२१॥ वीसमसमाहिठाणाणि चयइ तह सत्तगं बिभंगस्स । एवं सगवीसगुणा मुणिहि मणसा न झायव्वा (२५) ॥२२२॥ इगवीसं सबलाणं २१ करण मईहि २ असंवरचउक्कं ४। एवं सगवीसगुणा १७ मुणीहिं मणसा न झायव्वा (२६)॥२२३॥ भू१ जल २ जलणा ३ निल ४ वण ५-मिय साण ६ रासहे ७ कुकुडाचकरा ९। दीवग १० सुवण्ण ११ मुत्ता १२ हंस १३ बुय १४-पोय १५ सिरिफलया १६ ॥२२४॥ तह वंस १७ संख १८ तुंबय १९-चंदण २० गुरु २१ मेह २२ चंदसारिच्छा २३ । वसह २४ गयंद २५ मयंदा २६ दिणयरतेया २७ सया मुणिणो(२७) ॥२२५॥ इच्चाइणेगगुणगणनिवियठप्पयारकम्मगणा । तिक्कालं पणमिज्जा ते मुणिणो अत्तहरिसेण ॥२२६॥ गीयत्था संविग्गा निस्सल्ला चत्तगारवासंगा । जिणमयउज्जोयकरा सम्मत्तपभावगा मुणिणो ॥२२७॥ उस्सग्गमग्गनिरया बीयपयनिसेविणो वि कारणओ। तो पुण मूलगुणमि उत्तरगुणेसु विसइ कइया ॥२२८॥ पवज्ज संपत्तं सिरकं सुपरिस्किऊण कुलवंता । गिहिवासे वि असंगा ते साहु चरित्तभद्दकरा ॥२२९॥ 664CTOR SACROSC+CKASSI For Private & Personal Use Only Jain Education International wwwwinebrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130