Book Title: Sambodh Prakaranam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Jain Granth Prakashak Sabha

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Page 58
________________ संबोध २८ ॥ Jain Education International इत्तरिया कहिये दुविहं सामाइयं मुणेयव्वं । पढमतिमतित्थि पढमं मझ २२ विदेहमि अवकहियं ॥२५४॥ सामाइयंसि उ कए चाउजामं अणुत्तरं धम्मं । तिविहेण फासियते सामाइयसंजते य खलु ॥ २५५ ॥ सइयार १ निरइयारं २ छेओवठ्ठावणं भवे दुविहं । मझिमजिणाण समए विदेहखित्तंमि तं नत्थि ॥ २५६ ॥ छित्त् जियपरियागं पोराणं जो टवेति अप्पाणं । धम्मंमि पंचजामे छेओवठ्ठावणं स खलु ॥ २५७ ॥ परिहारविसुद्धितइयं दुविहं निव्विस्समाणयं पढमं । बीयं निव्विठ्ठकाइय- मिह नवमुणिगच्छ सेविययं ॥ २५८ ॥ परिहरइ जो विसृद्धं पंचजामं अणुत्तरं धम्मं । तिविहेण फासयंतो परिहारियसंजओ स खलु ॥ २५९ ॥ संकिठमाण १ सुविसु -झमाणर्य २ दुविहसंपरायं च । सेणिगयस्स उ मुणिणो हुज्जा हु कसायजुत्तस्स ॥ २६० ॥ लोभावेयंतो जो खलु उवसामओ य खवओ वा । सो सुहुमसंपराओ अहरकाओ णओ किंचि ॥२६१॥ तह अहखायचरितं छाउम्मत्थियकेवलित्तेय । चढणपडणस्स भयणा पढमे बीए वि नो पडणं ॥ २६२ ॥ वसंते १ खीणं वि जो खलु कम्मंमि गोहणिज्जंभी । छउम्मत्थो य जिणो वा अहरकायसंजओ स खलु ॥ २६३ ॥ पनवण १ वेय २ रागे ३ कप्प ४ चरित ५ पडिसेवणा ६ नाणे ७ । तित्ये ८ लिंग ९ सरीरे १० खित्त ११ काल १२ गइ ठिइ १४ संजम १५ निकासे १६ ॥ २६४ ॥ जोगु १७ ओग १८ कसार १९ लेसा २० परिणाम २१ बंधणे २२ वेए २३ । कम्मोदीरण २४ उवसं - पजहण २५ सण्णा य २६ आहारे २७ ॥ २६५ ॥ अव २८ आगरि २९ कालं ३० -तरेय ३१ समुघाय ३२ खित्तफुसणा य ३३ । For Private & Personal Use Only * प्रक० ॥२८॥ www.jainelibrary.org

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